101 Views
आज मोक्षदा एकादशी मनाई जा रही है. मोक्षदा एकादशी मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी को होती है. मोक्षदा एकादशी पर भक्त भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए व्रत जाता है और पूजा अर्चना की जाती है. मोक्षदा एकादशी का अर्थ है मोह का नाश करने वाली. इस दिन को मोक्ष प्राप्ति का दिन भी कहा जाता है. ऐसा भी कहा जाता है कि इस पूजा अर्चना करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ती होती है. इस दिन दान का फल अनंत गुना मात्र में प्राप्त होता है. आइए जानते हैं मोक्षदा एकादशी की व्रत कथा...
पौराणिक कथा के अनुसार, महाराज युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से कहा- हे भगवन! आप तीनों लोकों के स्वामी, सबको सुख देने वाले और जगत के पति हैं. मैं आपको नमस्कार करता हूँ. हे देव! आप सबके हितैषी हैं अत: मेरे संशय को दूर कर मुझे बताइए कि मार्गशीर्ष एकादशी का क्या नाम है?
उस दिन कौन से देवता का पूजन किया जाता है और उसकी क्या विधि है? कृपया मुझे बताएं. भक्तवत्सल भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे कि धर्मराज, तुमने बड़ा ही उत्तम प्रश्न किया है. इसके सुनने से तुम्हारा यश संसार में फैलेगा. मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी अनेक पापों को नष्ट करने वाली है. इसका नाम मोक्षदा एकादशी है.
इस दिन दामोदर भगवान की धूप-दीप, नैवेद्य आदि से भक्तिपूर्वक पूजा करनी चाहिए. अब इस विषय में मैं एक पुराणों की कथा कहता हूँ. गोकुल नाम के नगर में वैखानस नामक राजा राज्य करता था. उसके राज्य में चारों वेदों के ज्ञाता ब्राह्मण रहते थे. वह राजा अपनी प्रजा का पुत्रवत पालन करता था. एक बार रात्रि में राजा ने एक स्वप्न देखा कि उसके पिता नरक में हैं. उसे बड़ा आश्चर्य हुआ.
प्रात: वह विद्वान ब्राह्मणों के पास गया और अपना स्वप्न सुनाया. कहा- मैंने अपने पिता को नरक में कष्ट उठाते देखा है. उन्होंने मुझसे कहा कि हे पुत्र मैं नरक में पड़ा हूँ. यहाँ से तुम मुझे मुक्त कराओ. जब से मैंने ये वचन सुने हैं तब से मैं बहुत बेचैन हूँ. चित्त में बड़ी अशांति हो रही है. मुझे इस राज्य, धन, पुत्र, स्त्री, हाथी, घोड़े आदि में कुछ भी सुख प्रतीत नहीं होता. क्या करूँ?
राजा ने कहा- हे ब्राह्मण देवताओं! इस दु:ख के कारण मेरा सारा शरीर जल रहा है. अब आप कृपा करके कोई तप, दान, व्रत आदि ऐसा उपाय बताइए जिससे मेरे पिता को मुक्ति मिल जाए. उस पुत्र का जीवन व्यर्थ है जो अपने माता-पिता का उद्धार न कर सके. एक उत्तम पुत्र जो अपने माता-पिता तथा पूर्वजों का उद्धार करता है, वह हजार मुर्ख पुत्रों से अच्छा है. जैसे एक चंद्रमा सारे जगत में प्रकाश कर देता है, परंतु हजारों तारे नहीं कर सकते. ब्राह्मणों ने कहा- हे राजन! यहाँ पास ही भूत, भविष्य, वर्तमान के ज्ञाता पर्वत ऋषि का आश्रम है. आपकी समस्या का हल वे जरूर करेंगे.
ऐसा सुनकर राजा मुनि के आश्रम पर गया. उस आश्रम में अनेक शांत चित्त योगी और मुनि तपस्या कर रहे थे. उसी जगह पर्वत मुनि बैठे थे. राजा ने मुनि को साष्टांग दंडवत किया. मुनि ने राजा से सांगोपांग कुशल पूछी. राजा ने कहा कि महाराज आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल हैं, लेकिन अकस्मात मेरे च्ति में अत्यंत अशांति होने लगी है. ऐसा सुनकर पर्वत मुनि ने आंखें बंद की और भूत विचारने लगे. फिर बोले हे राजन! मैंने योग के बल से तुम्हारे पिता के कुकर्मों को जान लिया है. उन्होंने पूर्व जन्म में कामातुर होकर एक पत्नी को रति दी किंतु सौत के कहने पर दूसरे पत्नी को ऋतुदान माँगने पर भी नहीं दिया. उसी पापकर्म के कारण तुम्हारे पिता को नर्क में जाना पड़ा.
तब राजा ने कहा इसका कोई उपाय बताइए. मुनि बोले- हे राजन! आप मार्गशीर्ष एकादशी का उपवास करें और उस उपवास के पुण्य को अपने पिता को संकल्प कर दें. इसके प्रभाव से आपके पिता की अवश्य नर्क से मुक्ति होगी. मुनि के ये वचन सुनकर राजा महल में आया और मुनि के कहने अनुसार कुटुम्ब सहित मोक्षदा एकादशी का व्रत किया. इसके उपवास का पुण्य उसने पिता को अर्पण कर दिया. इसके प्रभाव से उसके पिता को मुक्ति मिल गई और स्वर्ग में जाते हुए वे पुत्र से कहने लगे- हे पुत्र तेरा कल्याण हो. यह कहकर स्वर्ग चले गए.
मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की मोक्षदा एकादशी का जो व्रत करते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं. इस व्रत से बढ़कर मोक्ष देने वाला और कोई व्रत नहीं है. इस कथा को पढ़ने या सुनने से वायपेय यज्ञ का फल मिलता है. यह व्रत मोक्ष देने वाला तथा चिंतामणि के समान सब कामनाएं पूर्ण करने वाला है.