वैशाख मास का पहला प्रदोष व्रत आज यानी 8 मई 2021 को है. शनि प्रदोष व्रत में भगवान शिव और शनिदेव की पूजा करने पर कई गुना पुण्य फल की प्राप्ति होती है. हिंदू शास्त्रों में मान्यता है कि प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा करने से संतान की प्राप्ति होती है. चूंकि इस बार प्रदोष व्रत शनिवार के दिन पड़ा है इस लिए इसे शनि प्रदोष व्रत कहते हैं. इस दिन, भक्त भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा करते हैं. साथ ही उपवास भी रखते हैं. इससे भक्तों को भगवान का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है. आइए आज हम आपके लिए लेकर आए हैं शनि प्रदोष व्रत की पौराणिक कथा...
पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीनकाल में एक नगर सेठ थे. सेठजी के घर में हर प्रकार की सुख-सुविधाएं थीं लेकिन संतान नहीं होने के कारण सेठ और सेठानी हमेशा दुःखी रहते थे. काफी सोच-विचार करके सेठजी ने अपना काम नौकरों को सौंप दिया और खुद सेठानी के साथ तीर्थयात्रा पर निकल पड़े. अपने नगर से बाहर निकलने पर उन्हें एक साधु मिले, जो ध्यानमग्न बैठे थे. सेठजी ने सोचा, क्यों न साधु से आशीर्वाद लेकर आगे की यात्रा की जाए.
सेठ और सेठानी साधु के निकट बैठ गए. साधु ने जब आंखें खोलीं तो उन्हें ज्ञात हुआ कि सेठ और सेठानी काफी समय से आशीर्वाद की प्रतीक्षा में बैठे हैं. साधु ने सेठ और सेठानी से कहा कि मैं तुम्हारा दुःख जानता हूं. तुम शनि प्रदोष व्रत करो, इससे तुम्हें संतान सुख प्राप्त होगा.
साधु ने सेठ-सेठानी प्रदोष व्रत की विधि भी बताई और भगवान शंकर की यह वंदना बताई. भगवान शंकर की वंदना -
हे रुद्रदेव शिव नमस्कार.
शिवशंकर जगगुरु नमस्कार..
हे नीलकंठ सुर नमस्कार.
शशि मौलि चन्द्र सुख नमस्कार..
हे उमाकांत सुधि नमस्कार.
उग्रत्व रूप मन नमस्कार..
ईशान ईश प्रभु नमस्कार.
विश्वेश्वर प्रभु शिव नमस्कार..
दोनों साधु से आशीर्वाद लेकर तीर्थयात्रा के लिए आगे चल पड़े. तीर्थयात्रा से लौटने के बाद सेठ और सेठानी ने मिलकर शनि प्रदोष व्रत किया जिसके प्रभाव से उनके घर एक सुंदर पुत्र का जन्म हुआ.