आज है मोहिनी एकादशी. सनातन धर्म में मोहिनी एकादशी व्रत की विशेष महिमा बताई गई है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यह व्रत इच्छाओं को पूर्ण करने वाला, कष्ट मिटाने वाले और मोह के बंधन से मुक्त करने वाला माना गया है. मोहिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लिया था. इस दिन पीपल की पूजा न करें. अन्यथा व्रती को धन का अभाव झेलना पडेगा. धार्मिक मान्यता है कि रविवार के दिन पीपल के वृक्ष के नीचे नहीं जाना चाहिए. इससे घर में दरिद्रता आती है.
रविवार के दिन पीपल की पूजा न करने से संबंधित एक कथा प्रचलित है. धार्मिक मान्यता है कि लक्ष्मी और दरिद्रा दो सगी बहनें थी. एक बार दोनों बहनें भगवान विष्णु से रहने के लिए स्थान मांगती हैं. भगवान विष्णु ने दोनों को पीपल के वृक्ष में वास करने का स्थान दिया. और यह भी कहा कि रविवार के दिन इस वृक्ष पर दरिद्रा का वास होगा शेष अन्य दिनों में लक्ष्मी का वास होगा. चूंकि इस बार मोहिनी एकादशी रविवार को पड़ रही है. इस लिए इस दिन पीपल की पूजा न करें.
मोहिनी एकादशी व्रत के पारण का समय : मोहिनी एकादशी व्रत का पारण द्वादशी में ही किया जाता है. त्रयोदशी में एकादशी व्रत का पारण कारण अशुभ फलदायी होता है. इसलिए मोहिनी एकादशी व्रत के पारण का शुभ समय 24 मई को सुबह 05: 26 बजे से सुबह 08:10 बजे तक है.
समुद्र मंथन की कथा:
यह पौराणिक कथा इन्द्र द्वारा ऋषि दुर्वासा, जिनका क्रोध कोई नहीं झेल पाया था, के असम्मान करने और परिणामस्वरूप अपना सिंहासन गंवाने से जुड़ी कहानी कहती है.
समुद्र मंथन देवताओं और असुरों के बीच हुआ. मंदार पर्वत और वासुकी नाग की सहायता से समुद्र मंथन की तैयारी शुरू की गई. मंदार पर्वत के चारों ओर वासुकी नाग को लपेटकर रस्सी की तरह प्रयोग किया गया. इतना ही नहीं विष्णु ने कछुए का रूप लेकर मंदार पर्वत को अपनी पीठ पर रखकर उसे सागर में डूबने से बचाया था.
शिव ने विष का प्याला पी लिया लेकिन उनकी पत्नी पार्वती, जो उनके साथ खड़ी थीं उन्होंने उनके गले को पकड़ लिया ताकि विष उनके भीतर ना जा सके. ऐसे में ना तो विष उनके गले से बाहर निकला और ना ही शरीर के अंदर गया. वह उनके गले में ही अटक गया, जिसकी वजह से उनका गला नीला पड़ गया. देवता चाहते थे कि अमृत के प्याले में से एक भी घूंट असुरों को ना मिल पाए, नहीं तो वे अमर हो जाएंगे. वहीं असुर अपनी शक्तियों को बढ़ाने और अनश्वर रहने के लिए अमृत का पान किसी भी रूप में करना चाहते थे.
असुरों के हाथ अमृत का प्याला ना लग सके इसलिए स्वयं भगवान विष्णु को मोहिनी का रूप धरना पड़ा, ताकि वे असुरों का ध्यान अमृत से हटाकर सारा प्याला देवताओं को पिला सकें.