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इस कथा से जानिए कि कौन थे हनुमान जी के पुत्र

कथानुसार रावण को युद्ध में अपनी हार दिखने लगी थी और वह परेशान हो गया था. रावण का महा प्रतापी पुत्र मेघनाथ और अत्यंत बलशाली भाई कुंभकर्ण युद्ध भूमि में मारे जा चुके थे. ऐसी स्थिति में रावण ने, पाताल लोक के स्वामी अहिरावण को मजबूर किया कि वह श्रीराम और लक्ष्मण का अपहरण करे. अहिरावण अत्यंत मायावी राक्षस राजा था. वह हनुमान का रूप धारण करके, अपनी माया से, श्रीराम और लक्ष्मण का अपहरण करके पताल लोक ले जाने में सफल भी हो गया. सुबह जब सब ने देखा, तो श्रीराम के शिविर में हाहाकार मच गया और उनकी खोज होने लगी.

बजरंगबली श्रीराम और लक्ष्मण को ढूंढते हुए पताल में जाने लगे. पाताल लोक के सात द्वार थे, और हर एक द्वार पर एक पहरेदार था लेकिन सभी पहरेदारों को हनुमान जी ने अपने बल से परास्त कर दिया, लेकिन अंतिम द्वार पर उन्हीं के समान बलशाली, स्वयं एक वानर पहरा दे रहा था. अपने समान रूप को देखकर हनुमान जी को आश्चर्य हुआ और उस वानर से हनुमान जी ने परिचय पूछा, तो उसने अपना नाम मकरध्वज बताया और अपने पिता का नाम हनुमान बताया.जैसे ही मकरध्वज ने अपने पिता का नाम हनुमान बताया, तो बजरंगबली अत्यंत क्रोधित हो गए और बोले कि यह असंभव है, क्योंकि मैं आजीवन ब्रह्मचारी रहा हूं. तुम ऐसा झूठ क्यों बोल रहे हो? फिर मकरध्वज ने बताया कि जब हनुमान जी लंका जला कर समुद्र में आग बुझाने को कूदे थे, तब उनके शरीर का तापमान अत्यंत बढ़ा हुआ था. ऐसे में जब वह सागर के ऊपर थे, तब उनके शरीर के पसीने की एक बूंद सागर में गिर गई थी, जिसे एक मकर ने पी लिया था, और उसी पसीने की बूंद से वह गर्भावस्था को प्राप्त हो गई. आपको बता दें कि वह मकर पूर्व जन्म में कोई अप्सरा थी, जो श्राप के कारण मकर बन गई थी. बाद में उसी मकर को अहिरावण के मछुआरों ने पकड़ लिया और मार दिया, और उसी के गर्भ से मकरध्वज का जन्म हुआ.

बाद में वह अप्सरा भी श्राप से मुक्त हो गई. यह कथा जानकर हनुमान जी ने मकरध्वज को अपने गले से लगा लिया. हालांकि अपने पिता के रूप में हनुमान जी को पहचानने के बाद भी मकरध्वज हनुमान जी को अंदर जाने देने को तैयार नहीं हुआ. अपने पुत्र को स्वामी भक्ति पर अटल देखकर हनुमान जी उससे और प्रसन्न हुए और दोनों में भयंकर युद्ध हुआ, लेकिन अंत में हनुमान जी ने अपनी पूंछ से उसे बांधकर दरवाजे से हटा दिया, और हनुमान जी ने राम और लक्ष्मण को मुक्त कराने में सफलता प्राप्त कर ली. बाद में मकरध्वज को ही पताल का नया राजा, स्वयं श्रीराम ने घोषित किया.