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पंचांग के अनुसार कालाष्टमी का व्रत ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रखा जाता है. जोकि आज यानी 2 जून को है. इस दिन काल भैरव की विधि पूर्वक उपासना करने से उपासक के सभी दुःख और परेशानियां दूर हो जाती है. चलिए पढ़ते है कालाष्टमी की पौराणिक कथा.
कालाष्टमी की पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार की बात है कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश इन तीनों में श्रेष्ठता की लड़ाई चली. इस बात पर बहस बढ़ गई, तो सभी देवताओं को बुलाकर बैठक की गई. सबसे यही पूछा गया कि श्रेष्ठ कौन है? सभी ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए और उत्तर खोजा लेकिन उस बात का समर्थन शिवजी और विष्णु ने तो किया, लेकिन ब्रह्माजी ने शिवजी को अपशब्द कह दिए. इस बात पर शिवजी को क्रोध आ गया और शिवजी ने इसे अपना अपमान समझा. शिवजी ने उस क्रोध में अपने रूप से भैरव को जन्म दिया. इस भैरव अवतार का वाहन काला कुत्ता है. इनके एक हाथ में छड़ी है.
इस अवतार को 'महाकालेश्वर' के नाम से भी जाना जाता है. इन्हें दंडाधिपति भी कहा जाता है. शिवजी के इस रूप को देखकर सभी देवता घबरा गए. भैरव ने क्रोध में ब्रह्माजी के 5 मुखों में से 1 मुख को काट दिया. तब से ब्रह्माजी के पास 4 मुख ही हैं. इस प्रकार ब्रह्माजी के सिर को काटने के कारण भैरवजी पर ब्रह्महत्या का पाप आ गया. ब्रह्माजी ने भैरव बाबा से माफी मांगी तब जाकर शिवजी अपने असली रूप में वापस आए.