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ब्रह्माविष्णुहमेशानदेवदानवराक्षसाः ।
यस्मात् प्रजज्ञिरे देवास्तं शम्भुं प्रणमाम्यहम् ।।
''ब्रह्म, विष्णु, महेश, देव, दानव, राक्षस जिनसे उत्पन्न हुए तथा जिनके सभी देवों की उत्त्पति हुई, ऐसे भगवान शम्भु को मैं प्रणाम करता हूं.''
भगवान रुद्र ही इस सृष्टि के सृजन, पालन और संहारकर्ता हैं। शम्भु, शिव, ईश्वर और महेश्वर आदि नाम उन्हीं के पर्याय शब्द अर्थात नाम हैं. श्रुतिका कथन है कि एक ही रुद्र हैं जो सभी लोकों को अपनी शक्ति से संचालित करते हैं, अतएव वही ईश्वर हैं, वही सबके भीतर अन्तर्यामी रूप से स्थित हैं. आध्यात्मिक, आधिभौतिक और आधिदैविक रुप से उनके ग्यारह पृखक्-पृथ्क् नाम श्रुति, पुराण आदि में प्राप्त होते हैं. शतपथब्रह्माण के चतुर्दशकाण्ड पुरुष के दस प्राण और ग्यारहवां आत्मा एकादश आध्यात्मिक रूद्र बताये गये हैं. अन्तरिक्षस्थ वायुप्राण ही हमारे शरीर में प्राण रूप होकर प्रविष्ट है और वही शरीर के दस स्थानों में कार्य करता है इसलिए उसे रुद्रप्राण कहते हैं, ग्याहरवां आत्मा भी रूद्र प्राणात्मा के रुप में जाना माना है.
आधिभौतिक रुद्र पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश, सूर्य, चंद्रमा, यजमान, पवमान, पावक और शुचि घोर रूप हैं. आधिदैविक रुद्र ताराण्डलों मे रहते हैं. विभिन्न पुराणों में इनके भिन्न-भिन्न नाम तता उत्पत्ति के भिन्न-भिन्न कारण मिलते हैं. इस प्रकार भगवान रुद्र ही सृष्टि के आदि कारण हैं तथा सृष्टि के कण-कण में विद्यमान हैं. ‘एक एव रुद्रोअवतस्थे न द्वितीयः’ और ‘असंख्याताः सहस्त्राणि ये रुद्रा अधिभूम्याम्’ इस प्रकार एक रुद्र और असंख्यात रुद्रों के वर्णन तन्त्र-ग्रन्थों में प्राप्त होते हैं. इसका अभिप्राय यह है कि एक रुद्र अधिनायक (मुख्य) है और शेष रुद्र उनकी प्रजा है. पुराणों में इनकी उत्पत्ति का कारण प्जापति के सृष्टि रच पाने की असमर्थता पर उनके मन्यु (क्रोध) और अश्रु को बताया गया है. शिवपुराण में, देवताओं के असुरों से पराजित हो जाने के बाद कश्यप की प्रार्थना पर कश्यप और सुरभि के द्वारा इनके अवतार का वर्णन है. शैवागम में एकादश रुद्रों का नाम – शम्भु, पिनाकी, गिरीश, स्थाणु, भर्ग, सदाशिव, शिव, हर, शर्व, कपाली तथा भव बतलाया गया है.
एक समय आनन्दवन में रमण करते हुए आदि एवं प्रथम रुद्र भगवान शम्भु के मन में एक से अनेक होने की इच्छा हुई. फिर उन्होंने अपने वाम भाग के दसवें अंगपर अमृत मलकर विष्णु को तथा दक्षिण भाग से ब्रह्मा को उत्पन्न किया। कुछ समय के बाद रुद्रमाया से मोहित होकर विष्णु और ब्रह्मा ने अपने कारण की खोज की, तब एक आदि-अन्तहीन ज्योतिर्लिंग का दर्शन हुआ, जिसके ओर-छोर का पता लगाने में दोनों असमर्थ रहे. विष्णु और ब्रह्मा के स्तुति करने पर अपनी शक्ति उमा देवी के साथ भगवान शम्भु प्रकट हुए. उन्होंने ब्रह्मा से कहा कि मेरी आज्ञा से तुम सृष्टि का निर्माण करो और विष्णु उसका पालन करें. मेरे अंश से प्रकट होने वाले रुद्र देव इस सृष्टि का संहार करेंगे. मैं ही इस सृष्टि का आदि कारण हूं तथा तुम दोनों के साथ रुद्र और सम्पूर्ण देव, दानव एवं राक्षसों का सृजन कर्ता हूं. भगवान विष्णु मेरे बायें अंग से तथा तुम दाहिने अंग से प्रकट हुए हो, उसी प्रकार रुद्र मेरे ह्दय से प्रकट होंगे, ऐसा कहकर भगवान शम्भु अन्तर्धान हो गए.
प्रथम रुद्र भगवान शम्भु की आधिभैतिक पृथ्वी-मूर्ति एकाम्रनाथ (क्षिति-लिग) के नाम से शिवकांची में है. इस दिव्य विग्रह पर जल नहीं चढ़ाया जाता है, अपितु इसे चमेली के तेल से स्नान कराया जाता है. प्रति समोमवार को भगवान की सवारी निकलती है. भगवती पार्वती ने शिवकांची में इस क्षिति- लिंग की प्रतिष्ठा करके शम्भु – रुद्र की उपासना की थी. इस लिंग के दर्शन मात्र से ऐश्वर्य की सिद्धि एवं अक्षय – कीर्ति की प्राप्ति होती है.