हिमालय पर्वत की बर्फीली चोटियों पर भगवान शिव का निवास स्थान है. आपने अमरनाथ केदारनाथ और कैलाश मानसरोवर के बारे में तो सुना होगा लेकिन इन सबसे भी आगे पर्वतों की चोटी पर स्थित भगवान शिव के इस रोचक स्थान श्रीखंड महादेव के बारे में नहीं सुना होगा. यहां हर कोई जाना चाहता है. यह वह स्थान हैं जहां भगवान शिव भस्मासुर से बचने के लिए छिपे थे. कहते हैं कि भस्मासुर राक्षस ने कई वर्षों तक भगवान शिव की कड़ी तपस्या की थी. उसकी तपस्या से खुश होकर भगवान भोलेनाथ ने उसे दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा. भगवान शिव का यह प्रश्न सुनकर भस्मासुर ने कहा कि मुझे ऐसा वरदान चाहिए कि जिस जीव के सिर पर वह हाथ रखे वह उसी समय भस्म हो जाए. भगवान भोलेनाथ ने उसे यह वरदान दे दिया. यह वरदान पाने के बाद भस्मासुर घमंड से भर गया और उसने भगवान शिव को ही जलाने की सोच ली. इससे बचने के लिए भगवान शिव को निरंमंड के देओढ़ांक में स्थित एक गुफा में छिपना पड़ा. कई महीनों तक भगवान शिव इसी गुफा में रहे. उधर, भगवान विष्णु ने भगवान शिव को बचाने और भस्मासुर का अंत करने के लिए मोहिनी नाम की एक सुंदर महिला का रूप धारण कर लिया. भस्मासुर मोहिनी के सौंदर्य को देखकर मोहित हो गया. मोहिनी ने भस्मासुर को अपने साथ नृत्य करने को कहा. भस्मासुर भी तैयार हो गया. वह मोहिनी के साथ नृत्य करने लगा. इसी बीच चतुराई दिखाते हुए मोहिनी ने नृत्य के दौरान अपना हाथ सिर पर रखा. इसे देखकर भस्मासुर ने जैसे ही अपना हाथ अपने सिर पर रखा वही उसी समय राख में बदल गया. भस्मासुर का नाश होने के बाद सभी देवता ढांक पहुंचे और भगवान शिव से बाहर आने की प्रार्थना की. महर भोलेनाथ एक गुफा में फंस गए. यहां से वह बाहर नहीं निकल पा रहे थे. वह एक गुप्त रास्ते से होते हुए इस पर्वत की चोटी पर शक्ति रूप में प्रकट हो गए. जब भगवान शिव यहां से जाने लगे तो यहां एक धमाका हुआ उस धमाके में एक विशाल आकार की एक शिला बच गई. इसे शिवलिंग मानकर पूजा जाने लगा. इसके साथ ही दो बड़ी चट्टाने हैं जिन्हें मां पार्वती और भगवान गणेश के नाम से पूजा जाता है. इस मार्ग में पार्वती बाग नाम की जगह आती है. ऐसा माना जाता है कि सबसे दुर्लभ ब्रह्म कमल भी यहीं पाए जाते हैं. यहां पार्वती झरना भी दर्शनीय है। मां पार्वती इस झरने का स्नानागार के रूप में इस्तेमाल करती थीं। श्रीखंड महादेव जाते वक्त रास्ते में खास तरह की चट्टानें भी मिलती हैं जिन पर कुछ लेख लिखे हैं। कहा जाता है भीम ने स्वर्ग जाने के लिए सीढ़ियां बनाने के लिए इनका इस्तेमाल किया था। मगर समय की कमी के कारण पूरी सीढ़ियां नहीं बन पाई।
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