सोमनाथ मंदिर गुजरात के वेरावल में स्थित भक्तों की आस्था का एक मुख्य केंद्र है। आज हम आपको 12 ज्योतिर्लिंगों में से पहले ज्योतिर्लिंग, सोमनाथ मंदिर के बारे में बताएंगे। यह प्राचीन मंदिर पिछले सैकड़ों वर्षों से भक्तों की आस्था का एक केन्द्र बना हुआ है। यह मंदिर एक महत्वपूर्ण प्राचीन मंदिर है, जिसकी गिनती 12 ज्योतिर्लिंगों में, सबसे पहले ज्योतिर्लिंग के रूप में होती है। ज्योतिर्लिंग उन स्थानों को कहा जाता है जहां पर भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए थे। देश में कुल 12 ज्योतिर्लिंग हैं जिनके नाम हैं - सोमनाथ, त्रियंबकेश्वर, नागेश्वर, भीमाशंकर, प्रिस्नेस्वर, महाकालेश्वर, ओमकारेश्वर, मल्लिकार्जुन, केदारनाथ, विश्वनाथ, वैद्यनाथ, रामेश्वर और घृष्णेश्वर। सोमनाथ मंदिर भारत देश के गुजरात राज्य में सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल शहर में समुद्र के किनारे स्थित है। इससे जुड़ी एक कहानी काफ़ी लोकप्रिय है। कहानी के अनुसार वर्तमान समय में बना सोमनाथ मंदिर देश की आज़ादी के बाद सरदार वल्लभ भाई पटेल जी द्वारा बनवाया गया था। इससे पहले इतिहास में यह मंदिर कई बार बनाया गया था और इसे कई बार किसी आक्रमण द्वारा शासकों ने तुड़वाया भी था। हिंदू ग्रंथों के अनुसार सोमनाथ मंदिर की स्थापना स्वयं चंद्र देव ने करवाई थी। सोमराज, चंद्र देव का दूसरा नाम है। कथाओं के अनुसार चंद्र देव ने दक्ष प्रजापति की 27 पुत्रियों से विवाह किया था। परंतु चंद्र देव उनमें से केवल रोहिणी को अधिक प्रेम करते थे। चंद्र देव के सिर्फ़ रोहिणी को अत्यधिक प्रेम करने की वजह से पिता दक्ष प्रजापति नाराज़ हो गए और उन्होंने चंद्र देवता को श्राप दे दिया। श्राप में उन्होंने कहा कि, “चंद्र देव आप धीरे-धीरे नष्ट हो जाएंगे और जो आपके अंदर चमक है वह भी धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगी।” इसके पश्चात चंद्र देव ने तपस्या की और सभी देवताओं से जाकर इस श्राप को हटाने का उपाय पूछा। चंद्र देव को भगवान शिव की आराधना करने के लिए ब्रह्मा जी ने कहा। जिसके पश्चात चंद्र देव ने भगवान शिव की घोर तपस्या की और आख़िरकार अपने अंतिम समय के अंतर्गत उन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न कर लिया। कहा जाता है कि श्राप के कारण चंद्र देव नष्ट होने ही वाले थे तभी भगवान शिव ने स्वयं प्रकट होकर उनको बचा लिया। भगवान शिव ने प्रकट होकर चंद्र देव से कहा कि, “मैं तुम्हारा श्राप तो समाप्त नहीं कर सकता लेकिन इसे कम अवश्य कर सकता हूं।” इसके पश्चात भगवान शिव ने चंद्र देव को आशीर्वाद दिया कि, “तुम महीने के 15 दिन घटोगे और 15 दिन बढ़ोगे।” इसके पश्चात से ही चंद्र देव महीने में सभी दिनों में घटते-बढ़ते रहते हैं। ऐसा माना जाता है कि तपस्या करते हुए जो अंतिम रूप चंद्र देव का बचा हुआ था, उसे भगवान शिव ने अपने सिर पर धारण कर लिया। चंद्रमा के इस अंतिम स्वरूप को आज भी भगवान शिव के माथे पर देखा जा सकता है। अपने नए जीवन के लिए चंद्र काफ़ी प्रसन्न थे और उन्होंने भगवान शिव के विश्राम के लिए एक मंदिर बनाया जिसे आज सभी लोग सोमनाथ मंदिर के नाम से जानते हैं। सोमनाथ मंदिर का एक स्तंभ काफ़ी ख़ास है। यह स्तंभ मंदिर के दक्षिण किनारे पर स्थित है। इस स्तंभ पर एक तीर बनाकर एक संकेत दिया गया है जो कि बतलाता है कि सोमनाथ और दक्षिणी ध्रुव के बीच में पृथ्वी का कोई भूभाग नहीं है।
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