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क्या होता है अधिक 'मास'

भारत..... आस्था और धार्मिक रीती-रीतिवाज़ों का देश, जहाँ गंगा स्नान, अनुष्ठान, दान, पूजा आदि धार्मिक कार्य किए जाते हैं साथ ही किसी विशेष तिथि, त्यौहार या विशेष महीने पर करने का खास महत्व होता है। ज्यादातर राज्यों में सभी प्रकार के त्योहारों को अपनी कुल परम्परा व उत्सव के रूप में मनाया जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार एक वर्ष में 12 महीने होते हैं वहीं हिन्दू कैलेंडर और पंचांग के अनुसार कई बार साल में 13 महीने भी आते हैं। जिसको हम अधिक मास या मल के नाम से जानते हैं। आखिर क्या होता है अधिक मास ? और क्यूँ हर तीन साल में एक बार अधिक मास लगता है ? आईये जानते हैं।

अग्रेंजी कैलेंडर में हर साल 12 महीने होते हैं। लेकिन पंचांग के अनुसार हर तीन साल में एक बार एक अतिरिक्त माह आता है, हिंदू कैलेंडर सूर्य और चंद्रमा की वर्ष गणना से चलता है। अधिकमास में चंद्रमा साल का अतिरिक्त भाग है, जो 32 माह, 16 दिन और 8 घंटे के अंतर से बनता है, वहीं सूर्य और चंद्रमा के बीच इसी अंतर को पूरा करने या संतुलन बनाने के लिए अधिकमास लगता है। भारतीय गणना के अनुसार, सूर्य एक साल के 365 दिन होता है और चंद्रमा एक वर्ष में 354 दिन होता है। इस तरह से एक साल में चंद्र और सूर्य के बीच एक वर्ष में 11 दिनों का अंतर होता है और तीन साल में यह अंतर 33 दिनों का हो जाता है। यही 33 दिन, तीन साल में एक अतिरिक्त माह बन जाता है। यही अतिरिक्त 33 दिन सूर्य और चंद्रमा की चाल गति के अनुसार किसी माह में जुड़ जाते हैं और तिथियों के बढ़ने और घटने के कारण 2 या 3 दिन कम या ज्यादा भी हो जाते हैं, ऐसा होने से व्रत-त्योहारों की तिथि अनुकूल हो जाती है और साथ ही अधिकमास के कारण काल गणना को उचित रूप से बनाए रखने में मदद मिलती है। इस मास का महत्व अन्य 12 महीनो से अधिक होता है इसलिए ये अन्य महीनो से उत्तम होने के कारण पुरुषोत्तम मास के नाम से भी जाना जाता है।

पुरुषोत्तम मास में चन्द्रमा के अतिरिक्त दिनों की संख्या पूर्ण होती है इसलिए इस माह में चंद्र दर्शन, तीर्थ यात्रा, विशेष तिथियों पर रात्रि जागरण, धार्मिक स्थलों की परिक्रमा करने का महत्व शास्त्रों में बताया गया है। पुरुषोत्तम मास में चन्द्रमा के प्रभाव से 16 कला सम्पूर्ण भगवान कृष्ण की पूजा के साथ मास के अधिपति देवता की पूजा का महीना भी बताया गया है।

अधिक मास  की कथा

एक बार दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने कठोर तपस्या से ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया और अमरता का वरदान मांग लिया । लेकिन अमरता का वरदान  निषिद्ध होने की वजह से ब्रह्मा जी ने उससे कुछ और मांगने को कहा । हिरण्यकश्यप ने कहा कि “ प्रभु ऐसा वरदान दें जिससे कोई नर-नारी, पशु, देवता, असुर उसे मार ना सके और वर्ष के सभी 12 महीनों में भी उसकी मृत्यु ना हो । मृत्यु न दिन में हो न रात को, न किसी अस्त्र से न शस्त्र से, न घर के अंदर मारा जा सके और न ही घर के बाहर ।“

ब्रह्मा जी के तथास्तु कहते ही हिरण्यकश्यप स्वयं को अमर और भगवान के समान मानने लगा । उसनें तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया और इंद्र का भी आसन छीन लिया। अधर्म के कार्य किये तथा ऋषि-मुनियों की हत्याएं करवा दी। उसने श्रीहरि के भक्त प्रह्लाद पर भी खूब अत्याचार किए।

तब भगवान विष्णु अधिकमास में नरसिंह अवतार के रूप में प्रकट हुए और शाम के समय उसे उसके भवन की चौखट पर ले जाकर, अपनी गोद में रखकर नाखूनों से उसका सीना चीर कर वध कर दिया।

रमन शर्मा