श्री उमियाधाम माता मंदिर : भक्त से मां ने बनवाया अपना मंदिर
यूं तो जगत जननी मां दुर्गा के 51 शक्तिपीठ हैं जिनसे जुड़ी धार्मिक मान्यताएं, पौराणिक गाथाएं और विशेषताएं हैं लेकिन गुजरात के सूरत में ताप्ती नदी के किनारे बना श्री उमियाधाम माता मंदिर वैसे तो कोई शक्तिपीठ नहीं है लेकिन भक्तों के लिए किसी शक्तिपीठ से कम भी नहीं है। इस आलेख में जानते हैं कि इस मंदिर का इतिहास और विशेषताएं क्या हैं ।
आदिशक्ति स्वरूपा मां अंबिका की यहां अष्टभुजा वाली भव्य और दिव्य मूर्ति विराजमान हैं। मां अंबिका अपनी आठों भुजाओं में दिव्य अस्त्र-शस्त्र धारण किए मधुर मुस्कान बिखेरती रहती है। श्री उमियाधाम माता मंदिर की ख्याति देश ही नहीं विदेश में भी है। सूरत में तो मां अबिका की इतनी मान्यता है कि यहां के निवासी अक्सर अपने दिन की शुरूआत मां के दर्शन के बिना नहीं करते।
मां के आदेश पर बना मंदिर
श्री उमियाधाम माता मंदिर के निर्माण को लेकर एक बड़ी ही रोचक और ह्रद्यस्पर्शी कथा प्रचलित है। इसके अनुसार सूरत में कभी एक गरीब महिला भारती मइया रहा करती थीं। वो मां अम्बे की परम भक्ति थी। एक बार कई दिनों तक लगातार मां दुर्गा, भारती मइया के स्वप्न में आईं और ताप्ती नदी के तट पर अपना मंदिर बनाने का आदेश दिया। इस पर भारती मइया ने “कहा कि मां मेरे पास न पैसा है न ज़मीन। मैं मंदिर कैसे बनवाऊं।“ तब माता रानी ने भारती मइया से कहा “तुम हर घर से केवल एक रूपया चंदा मांगो, मंदिर बन जाएगा।“ उसी रात मां ने अपनी एक और भक्त देवली को स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि “ताप्तीनदी के किनारे तुम्हारी जो भूमि है वो मेरा मंदिर निर्माण के लिए भारती मइया को सौंप दो।“ अगली सुबह देवली, भारती मइया के यहां पहुंची और भाव-विभोर होकर बोली “आपका बहुत-बहुत धन्यवाद जो आपने मुझे मां अम्बे के दर्शन करवा दिए। माता रानी के मंदिर निर्माण लिए अपनी ज़मीन मैं आपको सौंपती हूं।“
सन 1969 में बना मंदिर
ज़मीन मिल जाने से भारती मइया की हिम्मत बढ़ी और वो मां जगदम्बे के आदेशानुसार हर घर से एक रूपया चंदा मांगने के लिए निकल पड़ी। उन्होंने घर-घर जाकर चंदा मांगा, गांव-गांव जाकर भजन किए, माता की चौकी लगाई और जगराते किए। कुछ ही समय में उनके पास एक लाख रूपया इक्टठा हो गए । भारती मइया ने मंदिर का निर्माण शुरू करवा दिया। कई धनी दानदाता भी मंदिर निर्माण से जुड़ गए और देखते ही देखते, 1969 में मंदिर बनकर तैयार हो गया।
मंदिर का जीर्णोद्धार
समय बीतने के साथ उमिया माता मंदिर भक्तों की आस्था का केन्द्र बन गया। मंदिर की देख रेख के लिए 16 मई 1983 को "श्री उमिया परिवार ट्रस्ट, सूरत" का गठन हुआ और माता के मंदिर का भव्य रूप से जीर्णोद्धार करवाने का निर्णय लिया गया । अंतत: 4 मई 1990 को समारोहपूर्वक मंदिर का नवनिर्माण शुरू कर दिया गया। राजस्थान से बुलाए गए कुशल कारीगरों को इस सुंदर और उत्कृष्ट मंदिर का निर्माण करने में 9 वर्ष लगे। मंदिर का उद्घाटन और प्राणप्रतिष्ठा महोत्सव 10 अप्रैल से 14 अप्रैल 2010 तक आयोजित किया गया था, जिसमें 15 लाख से अधिक भक्तों ने भाग लिया ।
मंदिर का निर्माण गुलाबी रंग के बलुआ पत्थर से कराया गया है, जिसकी आयु हज़ारों वर्ष होती है। मंदिर में 62 कलात्मक स्तंभ बनाए गए । इसकी लंबाई 132 फीट, चौड़ाई 85 फीट और ऊंचाई 71 फीट है जबकि ध्वजस्तंभ साढ़े 16 फीट ऊंचा है।
मंदिर में स्थापित हैं कई मंदिर
इस दो मंजिल के भव्य मंदिर का निर्माण वास्तुकला की गुजराती शैली को दर्शता है। यहां आपको मां जगदम्बा के अष्टभुजा वाले रूप के दर्शन तो होते ही हैं साथ ही मंदिर परिसर में आपको छोटे मंदिर भी मिलेंगे जो भगवान शिव, भगवान श्री राम, देवी सीता और श्री लक्ष्मी नारायण को समर्पित हैं। साथ ही यहां मंदिर में प्रथम तल पर भारती मइया की मूर्ति भी स्थापित की गई है।
नवरात्र में होता है भव्य आयोजन
यूं तो उमिया धाम मंदिर परिसर में पूरे वर्ष विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता रहता है लेकिन सबसे बड़ा उत्सव नवरात्रि के दौरान मनाया जाता है। तब हर दिन पूजा-अर्चना के साथ कई धार्मिक आयोजन होते हैं और रात को मां की भक्ति में लीन होकर हजारों भक्त जलते हुए दीपक हाथ में लेकर गरबा खेलते हैं । महाअष्टमी के दिन विशेष महाआरती का आयोजन भी होता है।