नवरात्रि के नौ दिनों में देवी के नौ स्वरूपों की पूजा जाती है। ये नौ स्वरूप हैं शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री। अलग-अलग दिनों में इनकी पूजा की जाती है। इनके अलावा देवी के विशेष साधक दस महाविद्याओं की साधना करते हैं। इन महाविद्याओं की साधना अधूरे ज्ञान के साथ नहीं करना चाहिए, वरना पूजा का विपरीत फल भी मिल सकता है।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार देवी सती के 10 स्वरूपों को दस महाविद्याओं के नाम से जाना जाता है। नवरात्रि के दिनों में इन अलग-अलग मनोकामनाओं के लिए अलग-अलग विद्याओं की साधना की जाती है। इन महाविद्याओं की साधना पूरे विधि-विधान के साथ ही की जाती है। अगर साधना में कुछ गलती हो जाती है तो पूजा-पाठ का उल्टा असर भी हो सकता है। इसीलिए इन महाविद्याओं की साधना किसी विशेषज्ञ पंडित के मार्गदर्शन में ही करना चाहिए। इनके मंत्रों का जाप बिल्कुल सही उच्चारण के साथ ही करना चाहिए।
ये हैं दस महाविद्याओं के नाम
इनमें पहली विद्या हैं देवी काली, दूसरी हैं देवी तारा, तीसरी त्रिपुरा सुंदरी, चौथी भुवनेश्वरी, पांचवीं छिन्नमस्ता, छठी त्रिपुरा भैरवी, सातवीं धूमावती, आठवीं बगलामुखी, नौवीं मातंगी और दसवीं विद्या हैं देवी कमला।
इन दस महाविद्याओं के तीन समूह हैं। पहले समूह में सौम्य कोटि की प्रकृति की त्रिपुरा सुंदरी, भुवनेश्वरी, मातंगी, कमला शामिल हैं। दूसरे समूह में उग्र कोटि की काली, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी माता शामिल हैं। तीसरे समूह में सौम्य उग्र प्रकृति की तारा और त्रिपुरा भैरवी शामिल हैं।
ये है महाविद्याओं की उत्पत्ति की कथा
पं. शर्मा के अनुसार दस महाविद्याओं की उत्पत्ति देवी सती से मानी गई है। इस संबंध में कथा प्रचलित है कि सती के पिता दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया था। इस यज्ञ में शिवजी और सती को आमंत्रित नहीं किया गया था। क्योंकि, दक्ष शिवजी को पसंद नहीं करते थे।
जब ये बात देवी सती को मालूम हुई तो वे भी दक्ष के यहां जाना चाहती थीं। लेकिन, शिवजी ने देवी को वहां न जाने के लिए समझाया। शिवजी ने कहा कि हमें आमंत्रण नहीं मिला है, इसीलिए हमें वहां नहीं जाना चाहिए। सती अपने पिता के यहां जाना चाहती थीं। शिवजी के मना करने पर वे क्रोधित हो गईं।
सती क्रोधित हो गईं। इसके बाद दसों दिशाओं से दस शक्तियां प्रकट हुईं। देवी विकराल रूप और दस शक्तियों को देखकर शिवजी ने इन स्वरूपों के बारे में पूछा। तब देवी ने बताया कि काली, तारा, त्रिपुरा सुंदरी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपुरा भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला, ये सभी मेरी स्वरूप दस महाविद्याएं हैं।
इसके बाद देवी सती शिवजी के मना करने के बाद भी पिता दक्ष के यहां यज्ञ में पहुंच गईं। वहां अपने पति शिवजी का अपमान होते देख, उन्होंने अग्निकुंड में कूदकर देह त्याग दी। अगले जन्म में देवी ने हिमालय के यहां पार्वती के रूप में जन्म लिया था। बाद में शिवजी और पार्वती का विवाह हुआ।