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आज से नवरात्रि शुरू हो गया है. मां दुर्गा अपने भक्तों को आशीर्वाद देने आ गई हैं. इन नौ दिनों में पूरे देश में अलग ही रौनक दिखती है. हालांकि, इस साल कोरोना संकट को देखते हुए दुर्गा पूजा पंडालों और मंदिरों में गाइडलाइन के अनुसार ही पूजा का आयोजन होगा. कोलकाता में इन नौ दिन अलग रंग देखने को मिलता है. बड़े-बड़े पंडाल सजते हैं. जिसमें मां दुर्गा सुंदर-सुंदर मूर्तियां लगी होती हैं. लेकिन इस बार कोलकाता के एक पंडाल में मां दुर्गा की मूर्ति न होकर प्रवासी मजदूरों की मूर्ति को लगाया है. दक्षिण कोलकाता के पंडाल में कोरोना वायरस लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों के संघर्षों को इस मूर्ति में दर्शाया गया है. पूजा समिति ने इस मूर्ति की पूजा करने का निर्णय लिया है.
पंडाल में उन माताओं को दिखाया गया है, जो कोरोना वायरस के दौरान हुए लॉकडाउन में अपने बच्चों को लेकर हजारों किलोमीटर पैदल चली थीं. मां दुर्गा के अलावा अन्य देवी-देवताओं की जगह भी प्रवासी मजदूरों की मूर्तियां लगाई गई है. इनमें सरस्वती, गणेश, लक्ष्मी, कार्तिक आदि देवी-देवताओं की जगह प्रवासी मजदूरों की मूर्तियां लगी हैं. देवियों को प्रवासी मजदूरों की बेटियों से रिप्लेस किया गया है और उनके हाथ में देवियों के वाहन बतख और उल्लू हैं.
प्रवासी मजदूरों की माताओं के हाथ कार्तिक की जगह नंगे बदन के बच्चे हैं. इसके अलावा हाथी का सिर हाथ में लिए एक बच्चा गणेश को प्रदर्शित करता है. इसके अलावा कोई हथियार या असुर की मूर्ति भी नहीं है. टेलीग्राम अख़बार के अनुसार दुर्गा पूजा पंडालों का एक प्रमुख आकर्षण वह थीम है जिस पर सजावट और मूर्तियां आधारित हैं. बारिशा ने इस वर्ष की पूजा के लिए महामारी के विषय को चुना. मूर्ति को बनाने वाले कलाकार रिंटू दास ने कहा है कि इस बार देवी वह महिला है जिसने चिलचिलाती धूप में भूख के साथ बच्चों के लिए तपस्या की. वह भोजन, पानी और बच्चों के लिए कुछ राहत की तलाश में है.
कलाकार के अनुसार उन्होंने टीवी और अख़बारों में प्रवासी मजदूरों के पैदल चलकर आने की खबरें देखी या पढ़ीं और कुछ मजदूरों की जान रास्ते में ही जाने की खबरें भी देखीं. इसके अलावा उन्होंने कहा कि दिल्ली से बंगाल तक का सफर तय करने वाले मेरे कुछ दोस्तों से भी मुझे इन कहानियों के बारे में पता चला. गौरतलब है कि मार्च से लेकर जून तक के लॉकडाउन के दौरान करीबन एक करोड़ मजदूरों ने पलायन किया था. भारत सरकार के श्रम और रोजगार मंत्रालय का आधिकारिक डेटा ऐसा कहता है. लोकसभा में सड़क परिवहन और हाईवे मंत्रालय के राज्यमंत्री वीके सिंह ने उस समय के बारे में एक सवाल के जवाब में बताया कि 81385 दुर्घटनाएं सड़कों पर हुईं और 29415 लोगों की जानें गईं.