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नयना देवी में होता है मां की आंखों का पूजन और ज्वाला मंदिर में नहीं है माता की मूर्ति

हिमाचल के नयना देवी और ज्वाला देवी तीर्थ 51 शक्तिपीठ में आते हैं। मार्कंडेय पुराण के मुताबिक जहां माता सती की आंखें गिरी थी वहीं पर नयना देवी तीर्थ है और माता के नेत्रों की पूजा की जाती है। इसके अलावा जहां देवी की जीभ गिरी थी उस जगह ज्वाला देवी शक्तिपीठ है। नैनीताल में नैनी झील के किनारे मौजूद है। इस तीर्थ के लिए कहा जाता है कि करीब 500 साल पहले यहां मंदिर बनवाया गया था। इससे पहले शाक्त उपासक यहां गुप्त रुप से साधना करते थे।ज्वाला देवी शक्तिपीठ के लिए बताया जाता है कि इस जगह सदियों से धरती में से ज्वाला निकल रही है। जो कभी नहीं बुझती है। कहा जाता है कि यहां सबसे पहले पांडवों ने पूजा की थी।

नयना देवी: माता के नेत्रों की पूजा

नयना देवी मंदिर नेपाल की पगोडा और गौथिक शैली में बना है। कहा जाता है कि ये मंदिर 15वीं शताब्दी में बनाया गया है, लेकिन भूस्खलन के कारण यह नष्ट हो गया था और 1883 में स्थानीय लोगों की मदद से मंदिर फिर से बनाया गया। मंदिर के अंदर नैना देवी के साथ गणेशजी और मां काली की भी मूर्तियां हैं। मंदिर के प्रवेशद्वार पर पीपल का एक बड़ा पेड़ है। यहां माता पार्वती को नंदा देवी कहा जाता है। मंदिर में नंदा अष्टमी पर देवी पार्वती की भी विशेष पूजा की जाती है।

गिरे थे देवी सती के नेत्र

ऐसी मान्यता है कि जब शिव सती की मृत देह को लेकर कैलाश पर्वत जा रहे थे, तब जहां-जहां उनके शरीर के अंग गिरे वहां- वहां शक्ति पीठों की स्थापना हुई। कहा जाता है कि नैनी झील से पहले उस जगह पर देवी सती के नेत्र गिरे थे। इसी से प्रेरित होकर इस मंदिर का नाम नयना देवी पड़ा। प्रचलित मान्यता के मुताबिक मां के नयनों से गिरे आंसू ने ही ताल का रूप लिया और इसी वजह से इस जगह का नाम नैनीताल पड़ा। इस मंदिर के अंदर नैना देवी मां के दो नेत्र बने हैं। इन नेत्र के दर्शन से ही मां का आशीर्वाद मिल जाता है। नैना देवी के इस मंदिर की मान्यता है कि यदि कोई भक्त आंखों की समस्या से परेशान है और वह नैना मां के दर्शन कर ले तो जल्दी ही ठीक हो जाएगा । नैना देवी नाम का एक अन्य मंदिर हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में भी है।

ज्वाला देवी: 9 ज्वालाओं के रूप में देवियों की पूजा

हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा से 30 किलोमीटर दूर ज्वाला देवी का प्रसिद्ध मंदिर है। ज्वाला मंदिर को जोता वाली मां का मंदिर भी कहा जाता है। यहां किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती है बल्कि धरती से निकल रही नौ ज्वालाओं की पूजा की जाती है। 51 शक्ति पीठ में से एक इस मंदिर में देवी को अग्नि रूप में पूजा जाता है। माना जाता है यहां देवी सती की जीभ गिरी थी।

9 ज्वालाओं के रूप में नौ देवियां

नौ ज्वालाओं में प्रमुख ज्वाला माता जो चांदी के दीपक के बीच स्थित है उन्हें महाकाली कहते हैं। बाकी आठ ज्वालाओं के रूप में मां अन्नपूर्णा, चण्डी, हिंगलाज, विंध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका और अंजी माता की पूजा ज्वालाओं के रूप में की जाती है। माना जाता है सबसे पहले पांडवों ने यहां पूजा की थी। नवरात्र में विशेष पूजा का भी महत्व है।

अकबर और अंग्रेजों ने की ज्वाला बुझाने की कोशिश

मुगलकाल में बादशाह अकबर ने यहां ज्वाला को बुझाने की कोशिश की थी, लेकिन वो नाकाम रहा। बाद में ब्रिटिश काल में अंग्रेजों ने भी ज्वाला बुझाने की नाकाम कोशिश की थी। ज्वाला देवी शक्तिपीठ में माता की ज्वाला के अलावा एक अन्य चमत्कार देखने को मिलता है। यह गोरखनाथ का मंदिर भी कहलाता है। मंदिर परिसर के पास ही एक जगह गोरख डिब्बी है। यहां पर मौजूद कुण्ड में देखने पर लगता है कि गर्म पानी खौल रहा है जबकि छूने पर कुंड का पानी ठंडा लगता है।