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त्रिदेव के स्वरूप माने जाने वाले दत्तात्रेय भगवान की जयंती आज, पढ़िए कथा

भगवान दत्तात्रेय को त्रिदेवों का रूप माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों का संयुक्त स्वरुप हैं दत्तात्रेय भगवान. इनके तीन मुख और छह हाथ हैं और स्वरूप त्रिदेवमय है. इनके साथ कुत्ते और गाय भी दिखाई देते हैं. . हिंदू पंचाग के अनुसार दत्तात्रेय जंयती मार्गशीर्ष महीने की पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है. दत्तात्रेय जयंती के दिन लोग व्रत रखकर और धार्मिक क्रियाकलपों द्वारा भगवान दत्तात्रेय के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हैं. इनकी उपासना तत्काल फलदायी होती है और इससे शीघ्र कष्टों का निवारण होता है.

महत्व –

दत्तात्रेय जयंती मार्गशीष माह में शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है. इस दिन भगवान के बचपन के स्वरुप की आराधना की जाती है. भगवान दत्तात्रेय ने अपने चौबीस गुरु माने हैं, जिसमें प्रकृति, पशु पक्षी और मानव शामिल हैं. भगवान दत्तात्रेय का ध्यान करने से ही वह भक्तों के पास पहुंच जाते हैं और उनकी कामनाओं की पूर्ति करते हैं, दत्तात्रेय जयंती को उनकी अराधना करने का खासा महत्व है. इस दिन दत्तात्रेय जी के मंदिरों में धूमधाम से पूजा होती है. लोग आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति के लिए भी उनको पूजते हैं. भारत में मुख्य रूप से दत्तात्रेय जयंती महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात और आंध्र प्रदेश में मनाई जाती है.

 

दत्तात्रेय जयंती से जुड़ी ये है कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार दत्तात्रेय की माता अनसूया धार्मिक प्रवृति की एक विदूषी महिला थीं. उनकी ख्याति पृथ्वी लोक सहित तीनों लोकों में थी. माता अनसूया पुत्र के रूप में ऐसा बालक चाहती थीं जिसमें तीनों देव यानि ब्रह्मा, विष्णु और महेश के गुण हों. उनकी इस कामना से तीनों देवताओं की पत्नियों को बहुत जलन हुई और उन्होंने अपने पतियों से कहा कि आप देवी अनसूया को सबक सिखाएं. इसके बाद तीनों देवता ब्राह्मण का वेश धारण कर महर्षि अत्रि के पास पहुंचे. तीनों ब्राह्मणों को देख कर देवी अनुसूया उनका आदर-सत्कार करने के लिए आईं, लेकिन ब्राह्मणों ने कहा कि वह अपनी गोद में बैठा कर भोजन कराएं वह तब ही उनका आतिथ्य स्वीकार करेंगे.

देवी अनसूया ने अपनी चतुरता का परिचय देते हुए तीनों देवों पर पानी छिड़कर उन्हें छोटा बालक बना दिया और उनकी इच्‍छा पूरी की. ऋषि अत्रि के आने के बाद उन्होंने यह घटना उनको भी सुनाई, हालांकि ऋषि इसके बारे में पहले से ही अवगत थे. उन्होंने तीनों बालकों का सत्कार किया और तीनों बालकों को मिलाकर एक बालक बना दिया. इस बालक के तीन सिर और छह हाथ थे. तीनों देवों की पत्नियों को जब यह बात पता चली तो वह देवी अनसूया से क्षमा मांगने आईं और उनसे अपने पतियों को लौटाने की मांग की, देवी अनसूया उनकी विनती से पिघल गईं. उन्‍होंने तीनों देवों को वापस उनके असली अवतार में ला दिया, इसके बाद तीनों देवों ने उन्हें एक बालक दिया, यही बालक आगे चलकर दत्तात्रेय के रूप में जाने गए.