महाभारत के वनपर्व में हनुमानजी और भीम की कथा है। इसके अनुसार हमें किसी भी स्थिति में घमंड नहीं करना चाहिए। घमंड और गुस्से की वजह से बने-बनाए काम बिगड़ जाते हैं। आपको बता दें कि जहां हनुमानजी और भीम की भेंट हुई थी, वह जगह आज के उत्तराखंड में बद्रीनाथ धाम के पास स्थित है। इसे हनुमान चट्टी के नाम से जाना जाता है।
द्रौपदी के लिए लेने गए थे ब्रह्मकमल
महाभारत के वनपर्व में सभी पांडव और द्रौपदी वनवास में थे। एक दिन द्रौपदी ने गंगा में बहता हुआ ब्रह्मकमल देखा तो उसने भीम से ऐसे ही और फूल लेकर आने के लिए निवेदन किया। भीम द्रौपदी की इच्छा पूरी करने के लिए बद्रीवन में पहुंचे। रास्ते में भीम को एक वृद्ध वानर दिखाई दिया। वानर की पूंछ रास्ते पर फैली हुई थी। भीम ने उस वानर से कहा कि रास्ते से अपनी पूंछ हटा लो। मैं पूंछ लांघकर आगे नहीं जा सकता लेकिन उस वानर ने कहा कि बुढ़ापे की वजह से मैं बहुत कमजोर हो गया हूं। मैं मेरी पूंछ हटा नहीं सकता हूं। ये काम तुम ही कर दो।
भीम ने बहुत कोशिश की लेकिन वे पूंछ हिला नहीं सके। तब भीम समझ गए कि ये कोई सामान्य वानर नहीं है। तब भीम ने वानर से वास्तविक स्वरूप में आने का प्रार्थना की। हनुमानजी भीम के सामने अपने वास्तविक स्वरूप प्रकट हो गए।
हनुमानजी ने भीम को समझाया कि कभी अपनी ताकत पर घमंड नहीं करना चाहिए। कभी भी किसी को दुर्बल न समझें, किसी पर बिना उचित कारण गुस्सा न करें। भीम ने अपने किए व्यवहार के लिए भगवान से क्षमा मांगी और संकल्प लिया कि अब से वे घमंड नहीं करेंगे।