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वाल्मिकी रामायण के अनुसार, एक बार मिथिला में पड़े भयंकर सूखे से राजा जनक बेहद परेशान हो गए थे, तब इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए उन्हें एक ऋषि ने यज्ञ करने और धरती पर हल चलाने का सुझाव दिया.
ऋषि के सुझाव पर राजा जनक ने यज्ञ करवाया और उसके बाद राजा जनक धरती जोतने लगे. तभी अचानक उनका हल खेत में एक जगह फंस गया और काफी प्रयास के बाद भी नहीं निकला. उस जगह की जब मिट्टी हटवाई गई तो वहां से एक सुन्दर संदूक में एक छोटी बच्ची निकली. कन्या के बाहर निकलते ही राज्य में बारिश शुरू हो गई.
राजा जनक की कोई संतान नहीं थी, इसलिए उस कन्या को हाथों में लेकर उन्हें पिता प्रेम की अनुभूति हुई. राजा जनक ने उस कन्या को सीता नाम दिया और उसे अपनी पुत्री के रूप में अपना लिया. माता सीता के प्राकट्य की तिथि को ही उनके जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है.
माता सीता आरती:
आरति श्रीजनक-दुलारी की.
सीताजी रघुबर-प्यारी की..
जगत-जननि जगकी विस्तारिणि,
नित्य सत्य साकेत विहारिणि.
परम दयामयि दीनोद्धारिणि, मैया भक्तन-हितकारी की..
आरति श्रीजनक-दुलारी की.
सतीशिरोमणि पति-हित-कारिणि,
पति-सेवा-हित-वन-वन-चारिणि.
पति-हित पति-वियोग-स्वीकारिणि,
त्याग-धर्म-मूरति-धारी की..
आरति श्रीजनक-दुलारी की..
विमल-कीर्ति सब लोकन छाई,
नाम लेत पावन मति आई.
सुमिरत कटत कष्ट दुखदायी,
शरणागत-जन-भय-हारी की..
आरति श्रीजनक-दुलारी की.
सीताजी रघुबर-प्यारी की..