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पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी शैलपुत्री का जन्म पर्वतराज हिमालय के यहां हुआ था इसलिए उन्हें शैलसुता भी कहा जाता हैं। नवदुर्गाओं में प्रथम देवी शैलपुत्री दाहिने हाथ में त्रिशूल धारण करती हैं, जिनसे वह पापियों का नाश करती हैं। वहीं बाएं हाथ में कमल का पुष्प ज्ञान और शांति का प्रतीक है।
सबसे पहले मां शैलपुत्री की तस्वीर स्थापित करके उसके नीचे लकड़ी की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं। इसके ऊपर केसर से 'शं' लिखकर मनोकामना पूर्ति गुटिका रखें। फिर हाथ में लाल पुष्प लेकर 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ॐ शैलपुत्री देव्यै नम:।' मंत्र का जाप करें। फिर पुष्प को मनोकामना गुटिका या मां की तस्वीर के सामने रख दें। इसके बाद मां को भोग अर्पित करें।
कैसे करें मां को प्रसन्न
मां शैलपुत्री को पीला रंग पसंद है इसलिए इस दिन पीले वस्त्र धारण करना शुभ माना जाता है। इसके अलावा देवी शैलपुत्री को फूल या प्रसाद भी पीले रंग का ही चढ़ाएं। साथ ही ध्यान रखें कि मां को शुद्ध देसी घी का ही प्रसाद अर्पित करें।
देवी शैलपुत्री का स्रोत पाठ
प्रथम दुर्गा त्वंहि भवसागर: तारणीम्।
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यम्॥
त्रिलोजननी त्वंहि परमानंद प्रदीयमान्।
सौभाग्यरोग्य दायनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यहम्॥
चराचरेश्वरी त्वंहि महामोह: विनाशिन।
मुक्ति भुक्ति दायनीं शैलपुत्री प्रमनाम्यहम्॥
मंत्र - ओम् शं शैलपुत्री देव्यै: नम:। मंत्र संख्या पूर्ण होने के बाद मां के चरणों में अपनी मनोकामना को व्यक्त करके मां से प्रार्थना करें तथा श्रद्धा से आरती कीर्तन कर मां को प्रसन्न करें।