हिंदू पंचांग के अनुसार 11 मई 2021 यानी मंगलवार को वैशाख मास कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि है। वैशाख अमावस्या को सुतवाई अमावस्या और भौमावस्या के नामों से भी जाना जाता है। हिंदू धर्म में अमावस्या की तिथि का विशेष महत्व माना गया है। वैशाख अमावस्या के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन स्नान, पूजा और दान करने से पुण्य प्राप्त होता है। मान्यता है कि मंगलवार को पड़ने वाली अमावस्या पर पितरों की विशेष पूजा की जाए, तो पितरों की कृपा से परिवार के सभी रोग, दोष और शोक खत्म हो जाते हैं। इस दिन मंगल का व्रत और पूजा करने से मंगल दोष भी ख़त्म हो जाता है। वैशाख महीने की अमावस्या पर कुछ बातों का खासतौर से ध्यान रखना चाहिए।
वैशाख अमावस्या के दिन ये करें
वैशाख अमावस्या पर व्रत करना चाहिए। इससे संयम, आत्मबल और आत्मविश्वास बढ़ता है। इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर पानी में गंगाजल और तिल मिलाकर नहाना चाहिए। ऐसा करने से हर तरह के दोष और बीमारियां दूर होने लगती हैं। इसके बाद पानी में तिल मिलाकर सूर्य को अर्घ्य देने से ग्रह दोष दूर होते हैं। फिर पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाना चाहिए। ऐसा करने से बीमारियों से छुटकारा मिलता है। पितरों के लिए श्राद्ध करना चाहिए और जरूरतमंद लोगों को खाना खिलाना चाहिए। इस दिन किए गए अन्न और जल दान से कई यज्ञों को फल मिलता है।
अमावस्या पर उड़द खाने से बचें
अमावस्या पर उड़द या इससे बनी कोई भी चीज न खाएं। इस दिन मांसाहार और किसी भी तरह का नशा नहीं करना चाहिए। भोग और विलासिता से बचने की कोशिश करनी चाहिए। मांगलिक कार्य, शुभ कामों के लिए खरीदारी और नए काम की शुरुआत नहीं करनी चाहिए।
वैशाख अमावस्या: पौराणिक कथा
वैशाख अमावस्या के महत्व से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार धर्मवर्ण नाम के एक ब्राह्मण थे। एक बार उन्होंने किसी महात्मा के मुख से सुना कि कलियुग में भगवान विष्णु के नाम स्मरण से ज्यादा पुण्य किसी भी काम में नहीं है।
इसके बाद धर्मवर्ण ने सांसारिक जीवन छोड़ दिया और संन्यास लेकर भ्रमण करने लगे। एक दिन घूमते हुए वे पितृलोक पहुंचें। वहां उनके पितर बहुत कष्ट में थे। पितरों ने बताया कि ऐसी हालत तुम्हारे संन्यास के कारण हुई है। क्योंकि उनके लिए पिंडदान करने वाला कोई नहीं है।
पितरों ने कहा अगर तुम वापस जाकर गृहस्थ जीवन की शुरुआत करो, संतान उत्पन्न करो और साथ ही वैशाख अमावस्या के दिन विधि-विधान से पिंडदान करो। तो हमें राहत मिल सकती है।
धर्मवर्ण ने उन्हें वचन दिया कि वह उनकी ये इच्छा पूरी करेंगे। इसके बाद उन्होंने संन्यासी जीवन छोड़कर फिर से सांसारिक जीवन अपनाया और वैशाख अमावस्या पर विधि विधान से पिंडदान कर अपने पितरों को मुक्ति दिलाई।