पौराणिक कथा के अनुसार, हिरण्यकश्यप नाम का एक राक्षस था जो भगवान विष्णु का घोर विरोधी था. उसके राज्य में जो भी भगवान का नाम लेता उन पर बहुत अत्याचार किए जाते. हिरण्यकश्यप चाहता था कि उसकी प्रजा उसे ही भगवान् माने. उनका बेटा प्रह्लाद बहुत बड़ा विष्णु भक्त था. हिरण्यकश्यप ने उसे बहुत समझाया और डर दिखाया. लेकिन जब भक्त प्रह्लाद के सामने उसकी एक न चली तो उसने उन्हें पहाड़ी से नीचे फेंकने का आदेश दिया लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से भक्त प्रहलाद को कुछ भी नहीं हुआ. जब हिरण्यकश्यप ने यह देखा तो क्रोध से तिलमिला उठा और भगवान को ललकारने लगा. उसी समय उसके महल का खंभा फटा और नरसिंह भगवान अवतरित हुए. उनका रूप देख हिरण्यकश्यप कांप उठा. नरसिंह देव, ना पूरे पशु थे और ना पूरे मनुष्य, उन्होंने हिरण्यकश्यप का वध अस्त्रों या शस्त्रों से नहीं बल्कि अपनी गोद में बिठाकर अपने नाखूनों से उसकी छाती चीर कर किया था.
बता दें कि हिरण्यकश्यप ने ब्रह्मा जी की तपस्या कर उनसे वरदान मांगा था कि उसे न कोई इंसान मार पाए और न ही जानवर. न मैं रात में मारा जाऊं और न सुबह, न मेरी मौत घर के अन्दर हो न बाहर. इसलिए भगवान विष्णु को नरसिंह का अवतार लेना पड़े. नरसिंह देव, ना पूरे पशु थे और ना पूरे मनुष्य, उन्होंने हिरण्यकश्यप का वध अस्त्रों या शस्त्रों से नहीं बल्कि अपनी गोद में बिठाकर अपने नाखूनों से उसकी छाती चीर कर किया था. जिस समय हिरण्यकश्यप वध हुआ उस समय शाम का समय था और महल की देहरी पर बैठकर नरसिंह भगवान ने हिरण्यकश्यप का वध किया.