हिंदू मान्यता के अनुसार हर महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी मनाई जाती है. इस बार 2 जून को कालाष्टमी मनाई जाएगी. इस दिन भगवान काल भैरव की पूजा की जाती है. उन्हें शिव का पांचवा अवतार माना गया है. ऐसा भी मान्यता है कि भैरव शब्द के तीन अक्षरों में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की शक्ति समाहित है. इन्हें काशी के कोतवाल भी कहा जाता है. सकता. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कालाष्टमी के दिन भगवान भैरव की पूजा अर्चना करने से व्यक्ति भयमुक्त होता है और उसके जीवन की कई परेशानियां दूर हो जाती है और रोगों से मुक्ति मिलती है.
कालाष्टमी पूजा शुभ मुहूर्त:
ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष अष्टमी आरंभ - 02 जून रात्रि 12 बजकर 46 मिनट से
ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष अष्टमी समाप्त - 03 जून रात्रि 01 बजकर 12 मिनट परकालाष्टमी व्रत का महत्व:
काल भैरव को भगवान शिव का रौद्र रूप माना जाता है.वह समस्त पापों और रोगों का नाश करने वाले हैं.हिंदू शास्त्रों के अनुसार कालाष्टमी के दिन श्रद्धापूर्वक वर्त रखने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है.इस दिन व्रत रखकर कुंडली में मौजूद राहु के दोष से भी मुक्ति मिलती है.इसके साथ ही शनि ग्रह के बुरे प्रभावों से भी काल भैरव की पूजा करके बचा जा सकता है.तंत्र साधन करने वाले लोगों के लिए भी कालाष्टमी का दिन बहुत खास होता है.
काल-भैरव पूजा विधि:
कालाष्टमी के दिन भक्तों को सुबह नहा-धोकर भगवान काल भैरव की पूजा अर्चना करनी चाहिए. व्रती को पूरे दिन उपवास करना चाहिए और रात्रि के समय धूप, दीप, धूप,काले तिल,उड़द, सरसों के तेल का दिया बनाकर भगवान काल भैरव की आरती गानी चाहिए.
मान्यता के अनुसार, भगवान काल भैरव का वाहन कुत्ता है इसलिए जब व्रती व्रत खोलें तो उसे अपने हाथ से कुछ पकवान बनाकर सबसे पहले कुत्ते को भोग लगाना चाहिए. ऐसा करने से भगवान काल भैरव की कृपा आती है. पूरे मन से काल भैरव भगवान के पूजा करने पर भूत, पिचाश, प्रेत और जीवन में आने वाली सभी बाधाएं अपने आप ही दूर हो जाती हैं.