पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान विष्णु ने अपने धाम से निकलकर धरती पर जाने का विचार बनाया और जब उन्होंने इसकी तैयारी शुरू की तो मां लक्ष्मी ने उनसे पूछा की वह कहां जा रहे हैं. भगवान विष्णु ने उन्हें बताया कि वह धरती लोक पर घूमने जा रहे हैं.
ये बात मां लक्ष्मी ने भी भगवान विष्णु को उन्हें भी साथ ले जाने के लिए कहा तो भगवान विष्णु बोले की तुम मेरे साथ चल सकती हो लेकिन एक शर्त है कि तुम धरती पर पहुंचकर उतर दिशा की तरफ नहीं देखोगी.
मां लक्ष्मी ने शर्त मान ली और जैसे ही मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु धरती पर पहुंच तो सूर्यदेव उदय ही हुए थे और रात में हुई बारिश की वजह से आसपास का हरियाली की वजह से धरती काफी खूबसूरत नजर आ रही थी. जिसके चलते वह भुल गई की उन्होंने विष्णु जी को कुछ वचन दिया है और वह उतर दिशा की तरफ मुड़ गई और उस सुन्दर बगीचे में चली गईं. मां लक्ष्मी को फूलों की भीनी-भीनी खुशबू आ रही थी और वहां से मां लक्ष्मी बिना सोचे एक फूल भी तोड़ लाईं. जब वह फूल तोड़ने के बाद वापस आईं तो भगवान विष्णु भगवान की आंखों में आंसू थे.
मां लक्ष्मी जी के हाथ में फूल देख विष्णु जी बोले बिना किसी से पूछे उसकी चीज को हाथ नहीं लगना चाहिए. इसी के साथ अपने वचन को भी विष्णु जी ने याद दिलाया जिसे मां लक्ष्मी भूल गईं थी. मां को अपनी गलती का एहसास हुआ हुआ और उन्होंने अपनी भूल के लिए क्षमा भी मांगी. भगवान विष्णु ने कहा कि तुमने गलती है और तुम्हें सजा अवश्य मिलेगी. जिस माली के खेत से तुम ये फूल बिना पूछे ले आई हो उस घर में अब तुम नौकर बनकर रहो.
भगवान विष्णु के आदेश के अनुसार मां लक्ष्मी उस माली के घर चली गई. मां लक्ष्मी ने उस समय एक गरीब औरत का रूप धारण कर लिया था. मां लक्ष्मी ने माली के घर रहकर अपनी सजा पूरी करी और जब उस माली को इस बारे में पता चला तो कि वह गरीब औरत कोई और नहीं मां लक्ष्मी हैं तो उसने मां से क्षमा मांगी और कहा कि हमने आपसे अनजाने में ही घर और खेत में काम करवाया, हे मां यह कैसा अपराध हो गया, हे मां हम सब को माफ़ कर दें.
यह सुन मां लक्ष्मी मुस्कुराईं और बोलीं, 'हे माधव तुम बहुत ही अच्छे और दयालु व्यक्त्ति हो, तुमने मुझे अपनी बेटी की तरह रखा, अपने परिवार का सदस्य बनाया. इसके बदले मैं तुम्हें वरदान देती हूं कि तुम्हारे पास कभी भी खुशियों की और धन की कमी नहीं रहेगी, तुम्हें सारे सुख मिलेंगे जिसके तुम हकदार हो. जिसके बाद मां लक्ष्मी वापस विष्णु जी के पास चली गई.