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क्या आप जानते है भगवान शिव ने क्यों लिया था शरभ अवतार ?

सर्वप्रथम शिव ने ही धरती पर जीवन के प्रचार-प्रसार किया इसलिए उन्हें 'आदिदेव' भी कहा जाता है. 'आदि' का अर्थ प्रारंभ. आदिनाथ होने के कारण उनका एक नाम 'आदिश' भी है. जब-जब संसार पर कोई संकट आई है तब-तब भगवान शिव ने अपने अवतार लेकर संसार को संकट से बाहर निकाला है. भगवान शिव का छटा अवतार है शरभावतार. शरभावतार में भगवान शंकर का स्वरुप आधा मृग तथा शेष शरभ पक्षी (पुराणों में वर्णित आठ पैरों वाला जंतु जो शेर से भी शक्तिशाली था) का था. लिंगपुराण में शिव के शरभावतार की कथा है, उसके अनुसार हिरण्यकशिपु का वध करने के लिए भगवान विष्णु ने नृसिंहावतार लिया था. हिरण्यकशिपु के वध के पश्चात भी जब भगवान नृसिंह का क्रोध शांत नहीं हुआ तो देवता शिवजी के पास पहुंचे.

तब भगवान शिव के शरभावतार लिया और वे इसी रुप में भगवान नृसिंह के पास पहुंचे तथा उनकी स्तुति की, लेकिन नृसिंह की क्रोधाग्रि शांत नहीं हुई. यह देखकर शरभ रुपी उन्होंने विनम्र भाव से भागवान शिव अपनी पूंछ में नृसिंह को लपेटकर ले उड़े. तब कहीं जाकर भगवान नृसिंह की क्रोधाग्रि शांत हुई. तब शरभावतार से क्षमा याचना कर अति उनकी स्तुति की.