भगवान विष्णु ने कुल 24 अवतार लिए हैं। मत्स्य और कश्यप के बाद तीसरा अवतार है वराह। वराह यानी शुकर। इस अवतार के माध्यम से मानव शरीर के साथ परमात्मा का पहला कदम धरती पर पड़ा। मुख शुकर का था, लेकिन शरीर इंसानी था। उस समय हिरण्याक्ष नामक दैत्य ने अपनी शक्ति से स्वर्ग पर कब्जा कर पूरी पृथ्वी को अपने अधीन कर लिया था। हिरण्याक्ष का अर्थ है हिरण्य मतलब स्वर्ण और अक्ष मतलब आंखें। जिसकी आंखें दूसरे के धन पर लगी रहती हों, वो हिरण्याक्ष है।
पुरातन समय में दैत्य हिरण्याक्ष ने जब पृथ्वी को ले जाकर समुद्र में छिपा दिया तब ब्रह्मा की नाक से भगवान विष्णु वराह रूप में प्रकट हुए। भगवान विष्णु के इस रूप को देखकर सभी देवताओं व ऋषि-मुनियों ने उनकी स्तुति की। सबके आग्रह पर भगवान वराह ने पृथ्वी को ढूंढना प्रारंभ किया। अपनी थूथनी की सहायता से उन्होंने पृथ्वी का पता लगा लिया और समुद्र के अंदर जाकर अपने दांतों पर रखकर वे पृथ्वी को बाहर ले आए। जब हिरण्याक्ष दैत्य ने यह देखा तो उसने भगवान विष्णु के वराह रूप को युद्ध के लिए ललकारा। दोनों में भीषण युद्ध हुआ। अंत में भगवान वराह ने हिरण्याक्ष का वध कर दिया। इसके बाद भगवान वराह ने अपने खुरों से जल को स्तंभित कर उस पर पृथ्वी को स्थापित कर दिया। इसके पश्चात भगवान वराह अंतर्धान हो गए।