एक दिन सुदर्शन मन ही मन सोचने लगा कि श्रीकृष्ण दुष्ट और पापियों के सर्वनाश के लिए उसी की मदद लेते हैं. उसे अपनी शक्ति पर घमंड हो गया. इस बात का पता श्री कृष्ण को चला तो उन्होंने तय किया कि सुदर्शन का अहंकार तोड़ना ही होगा. ऐसे में उन्होंने हनुमानजी की मदद ली. कृष्ण जी के याद करते ही हनुमान समझ गए कि उनके प्रभु श्रीराम और श्रीकृष्ण एक ही हैं, इसलिए वो बिना देरी किए द्वारिका चल पड़े. यहां श्रीकृष्ण से मिलने के बजाय वे राज उपवन में घुस गए.
यहां अशोक वाटिका की तरह की वृक्षों पर बड़े मीठे-रसीले फल मिले तो भूखे बजरंग बली उन्हें तोड़कर खाने लगे. पेट भरने के बाद हनुमान जी फलों को तोड़कर नीचे फेंकने लगे. इसका पता कृष्णजी चला तो उन्होंने सेना को आदेश दिया कि वानर को पकड़कर लाएं. सैनिकों ने हनुमानजी को ललकार कर कहा कि क्या तुम्हें नहीं पता कि यहां का राजा कौन है? फिर खुद ही सैनिक ने जवाब दिया यहां के राजा श्रीकृष्ण हैं, वो तुम्हे बुला रहे हैं.
इस पर महाबली ने क्रोध का नाटक करते हुए कहा, कौन कृष्ण, मैं किसी नहीं जानता. मैं सिर्फ प्रभु श्रीराम का सेवक हूं. जाओ अपने राजा से कह दो, मैं नहीं आऊंगा. क्रोधित सेना नायक ने कहा कि तुम साथ नहीं चलोगे तो जबरदस्ती ले जाऊंगा. वह हनुमानजी पकड़ने आगे बढ़ा तो हनुमान जी ने सारी सेना को पूंछ में लपेटकर राजमहल में फेंक दिया. घबराए सेनापति ने श्रीकृष्ण को दरबार में आकर आपबीती सुनाई तो कृष्ण ने सेनापति से कहा कि वानर से कहिये कि श्रीराम बुला रहे हैं. यह सुनकर सेना नायक हनुमान जी के पास चला गया, इधर श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र को आदेश दिया कि तुम्हें द्वार की रखवाली करनी है. ध्यान रखना है कि कोई बिना अनुमति अंदर ना आ पाए।
कोई बिना आज्ञा आने का प्रयास करे तो वध कर देना. यह सुनकर सुदर्शन चक्र द्वार की रखवाली करने लगे. इधर, श्रीकृष्ण भी जानते थे कि श्री राम का सन्देश सुनकर हनुमान जी एक पल भी नहीं रुक सकते हैं. सेना नायक ने हनुमानजी से कहा कि श्रीराम तुम्हे बुला रहे हैं तो हनुमान जी फौरन दरबार के लिए निकल पड़े. लेकिन द्वार पर सुदर्शन चक्र ने उन्हें रोक दिया. हनुमान जी ने सुदर्शन से रास्ता छोड़ने को कहा तो सुदर्शन ने हनुमानजी को युद्ध के लिए ललकारा और दोनों में भयंकर युद्ध छिड़ गया. कुछ देर तक लड़ने के बाद हनुमानजी को लगा कि सुदर्शन से युद्ध मे उलझकर सिर्फ समय बर्बाद हो रहा है.
उन्होंने सोचा कि किसी भी तरह युद्ध जल्द समाप्त करना होगा. देखते ही देखते उन्होंने सुदर्शन चक्र को हाथ से पकड़ कर मुंह में रख लिया और मुंह में दबाए ही वह दरबार तक पहुंच गए। यहां वे सबसे पहले श्रीकृष्ण के चरणों में नतमस्तक हो गए. यह देख श्रीकृष्ण ने हनुमान को गले से लगाकर पूछा हनुमान अंदर कैसे आए, क्या किसी ने रोका नहीं. तब हनुमानजी ने बताया कि सुदर्शन ने रोका था, लेकिन आपके दर्शनों में देरी हो रही थी तो मैं उनसे युद्ध में नहीं उलझा सीधे मुंह में दबा लिया. यह कहते हुए हनुमान जी ने मुंह से सुदर्शन चक्र को निकालकर कृष्ण के चरणों में रख दिया. यह देखकर सुदर्शन चक्र का घमंड शर्म से पानी-पानी हो गया.