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जरूर पढ़ें हनुमान जी और भीम का यह किस्सा...

 
महाभारत का पात्र भीम बेहद शक्तिशाली था. कुरक्षेत्र में, उन्होंने अपने युद्ध कौशल और मांसपेशियों की शक्ति से कई योद्धाओं को हराया. ऐसा कहा जाता है कि भीम को भी अपनी शक्ति पर गर्व था. एक बार द्रौपदी ने उनसे कहा, आप एक महान नायक हैं, शक्तिशाली हैं. मुझे गंधमादन पर्वत पर पाया जाने वाला एक विशेष कमल का फूल चाहिए. क्या आप मुझे वह फूल ला सकते हैं ?
भीम ने द्रौपदी के अनुरोध को स्वीकार कर लिया और गंधमादन पर्वत की ओर चल पड़े. वे कुछ दूर ही गए थे कि उन्हें वहां पर एक बूढ़ा बंदर मिला. वह रास्ते में सो रहा था और उसकी पूंछ भी रास्ते में आ रही थी. भीम जानता था कि किसी भी प्राणी का ऐसे रास्ता पार करना अशिष्टता है. तो उसने बंदर से कहा – बंदर, तुम्हारी पूंछ मेरे रास्ते में आ रही है. मुझे देरी हो रहा है. इसे तुरंत हटा दें.
बंदर ने कहा – तुम बहुत शक्तिशाली लग रहे हैं. तुम ही हटा दो. क्योंकि मैं बहुत कमजोर हो गया हूं. या फिर तुम मेरे ऊपर से कूद कर चले जाओ. भीभ सोचने लगा, ये बहुत विचित्र वानर है, अपनी पूंछ भी नहीं हिला सकता. लेकिन मेरे पास तो अपार शक्ति है. इसने मेरी ताकत को चुनौती दी है. मैं अभी इसकी पूंछ हटाता हूं. भीम अपनी गदा लेकर उसकी पूंछ हटाने लगा.
उन्होंने बहुत शक्ति का इस्तेमाल किया, लेकिन वे इसे हिला भी नहीं पाया. जिस पूंछ को वे एक साधरण बंदर की पूंछ समझ रहा था, वो तो महाबली हनुमान जी की पूंछ थी. आखिर में भीम हार मान गया. और कहा – आप कोई साधरण वानर नहीं हैं. मैं आपकी शक्ति को नमन करता हूं और जानना चाहता हूं कि आप कौन हैं ? इसके बाद हनुमान जी अपने असली रुप मे आए.
उन्होंने भीम को आशीर्वाद दिया और कहा कि तुम्हें अपनी शक्ति का अभिमान हो गया था. इसलिए मैंने तुम्हें यह अहसास कराया. अपनी शक्ति का कभी अभिमान मत करना. हनुमान जी से यह सबक सीखने के बाद भीम को अपनी गलती का एहसास हुआ. उन्होंने कभी घमंड नहीं करने का वचन दिया, और हनुमान जी को झुक कर प्रणाम किए.