पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान गणेश जी का सिर हाथी का और एक दांत टूटा हुआ था जिसकी वजह से उनकी शादी नहीं हो पा रही थी। विवाह के लिए कोई कन्या न मिलने की वजह से भगवान गणेश नाराज रहने लगे। भगवान गणेश जी जब किसी दूसरे देवता के विवाह में जाते तो उनके मन को ठेस पहुंचती थी। ऐसा माना जाता है कि इस कारण से गणेश जी ने दूसरे देवताओं के विवाह में विघ्न डालना शुरू कर दिया था। इस काम में गणेश जी की सहायता उनका वाहन मूषक करता था।
मूषक गणेश जी का आदेश पाकर दूसरे देवताओं के विवाह मंडप को नष्ट कर देता था। इससे अन्य देवताओं के विवाह में रुकावट आ जाती थी। गणेश जी और चूहे की मिलीभगत से सारे देवता परेशान हो गए और शिवजी के पास जाकर अपनी व्यथा सुनाने लगे, लेकिन भगवान शिव के पास भी इस परेशानी का कोई हल नहीं था। ऐसे में शिव-पार्वती ने देवताओं से कहा कि इसका समाधान ब्रह्मा जी के पास है।
अब सभी देवता ब्रह्मा जी के पास गए। ब्रह्मा जी योग में लीन थे। देवताओं की प्रार्थना सुनने के बाद ब्रह्मा जी योग से जगे और उन्होंने देवताओं की समस्या के समाधान के लिए अपने योग से दो कन्याएं ऋद्धि और सिद्धि प्रकट की। दोनों ब्रह्माजी की मानस पुत्री थीं। दोनों पुत्रियों को लेकर ब्रह्माजी गणेश जी के पास पहुंचे और बोले, आपको इन्हें शिक्षा देनी है। गणेश जी शिक्षा देने के लिए तैयार हो गए। जब भी चूहे द्वारा गणेश जी के पास किसी के विवाह की सूचना आती थी तो ऋद्धि और सिद्धि उनका ध्यान भटकाने के लिए कोई न कोई प्रसंग छेड़ देतीं थीं। ऐसा करने से हर विवाह बिना किसी बाधा के पूर्ण होने लगा।
मूषक ने जब भगवान गणेश को देवताओं के विवाह बिना किसी रुकावट के सम्पूर्ण होने की बात बताई तब पहले तो गणेश जी क्रोधित हुए लेकिन बाद में उन्हें सारी बातें समझ में आ गईं। इसके बाद ब्रह्मा जी उनके सामने ऋद्धि- सिद्धि को लेकर प्रकट हुए और बोले, मुझे इनके लिए कोई योग्य वर नहीं मिल रहा है। आप इनसे विवाह कर लें। इस तरह भगवान गणेश का विवाह धूमधाम से ऋद्धि और सिद्धि के साथ हुआ।