बिहार के थावें में मां थावेवाली के दर्शन के लिए दूर-दूर से आते हैं. नवरात्र में मां के इस मंदिर में भक्तों लाइन लगी रहती है. इस मंदिर की ऐसी मान्यता हैं कि भक्त रहषु के बुलाने पर मां कामख्या से चलकर थावे पहुंची थीं. यहां भक्त मां को सिंहासिनी भवानी, थावे भवानी और रहषु भवानी के नाम से पुकारते हैं. तो चलिए जाने इस चमत्कारी मंदिर की कहानी..... पौराणिक कथाओ के अनुसार राजा मनन सिंह हथुआ के राजा था. वह अपने आपको मां दुर्गा का सबसे बड़ा भक्त मानता था. इस बात का उसको बहुत घमंड था. वह अपने आगे किसी को भी मां का भक्त नहीं मानता था. कुछ समय के बाद राज्य में अकाल पड़ गया और लोग खाने को तरसने लगे, वहीं थावे में कमाख्या देवी मां का एक सच्चा भक्त रहषु रहता था. रहषु मां की कृपा से दिन में घास काटता और रात को उसी से अन्न निकल जाता था. जिस कारण वहां के लोगों को अन्न मिलने लगा था. लेकिन, इस चमत्कार का राजा को विश्वास नहीं हुआ. राजा ने रहषु को ढोंगी बताते हुए मां को बुलाने को कहा. रहषु ने कई बार राजा से प्रार्थना की कि अगर मां यहां आएंगी तो राज्य बर्बाद हो जाएगा. लेकिन, घमंडी राजा नहीं माना. रहषु की प्रार्थना पर मां कोलकाता, पटना और आमी होते हुए वहां पहुंचीं और रहषु के मस्तक को विभाजित करते हुए साक्षात दर्शन दीं. जिसके बाद राजा के सभी भवन गिर गए और राजा को मोक्ष प्राप्त हो गया. मां ने जहां दर्शन दिया था, वहां एक भव्य मंदिर है. उसके कुछ ही दूरी पर रहषु जो मां का सबसे बड़ा भक्त था उसका भी मंदिर है. मान्यता है कि जो लोग मां के दर्शन के लिए आते हैं वे रहषु भक्त के मंदिर में भी जरूर जाते हैं. तभी उनकी पूजा पूरी मानी जाती है. इसी मंदिर के पास आज भी राजा मनन सिंह के भवनों का खंडहर मौजूद है. श्रद्धालुओं के अनुसार यहां के लोग किसी भी शुभ कार्य के पूर्व और उसके पूर्ण हो जाने के बाद यहां आना नहीं भूलते. यहां मां के भक्त प्रसाद के रूप में नारियल, पेड़ा और चुनरी चढ़ाते हैं. थावे मां के दरबार के मुख्य पुजारी सुरेश तिवारी कहते हैं कि मां के आर्शीवाद को पाने के लिए कोई महंगी चीज की आवश्यकता नहीं. मां केवल मनुष्य की भक्ति और श्रद्धा देखती हैं. मंदिर का गर्भ गृह को अब अत्याधुनिक बना दिया गया है.
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