भगवान कृष्ण के जीवन में ऐसे कई प्रसंग हैं जो हमें सिखाते हैं कि हम अपने व्यक्तिगत, पारिवारिक, बिजनेस और समाजिक जीवन में कैसे संतुलन बना सकते हैं और इन चारों भागों में सुख-शांति और सफलता कैसे लाई जाए। 1 - निजी जीवन यानि खुद के लिए निकाला गया समय। जब व्यक्ति दुनिया से अलग खुद के साथ होता है। मानसिक शांति के लिए ये आवश्यक है। मानसिक शांति के लिए एकांत और एकांत को सफल बनाने के लिए कोई साधन आवश्यक है। कृष्ण के पास तीन साधन थे। संगीत, प्रकृति और ध्यान। ब्रज मंडल में यमुना किनारे एकांत में बांसुरी की धुन उन्हें मानसिक शांति देती थी। दूसरा, प्रकृति के निकट रहने के लिए कृष्ण अक्सर यात्राएं करते थे। एक राज्य से दूसरे राज्य। जब वे धरती से असुरों का साम्राज्य समाप्त करने निकले थे, तो एक राज्य से दूसरे राज्य के बीच की यात्रा में वे प्रकृति के निकट रहते थे। तीसरा है ध्यान। कम ही लोग जानते हैं कि कृष्ण नियमित ध्यान भी करते थे। निजी जीवन को लेकर कृष्ण सचेत थे। वे अपने लिए एकांत खोज लेते थे। 2-परिवार कैसा हो और उसके संस्कार कैसे हों, ये भगवान कृष्ण के जीवन से सीखना चाहिए। परिवार की कमान एक हाथ में होनी चाहिए। द्वारिका में जब भगवान कृष्ण होते थे तो सारे राज्य का संचालन उनके हाथ में होता था, लेकिन परिवार का संचालन रूक्मिणी के हाथ में होता था। परिवार में सदस्यों का सम्मान कैसा होना चाहिए, इसका सबसे अच्छा उदाहरण भागवत में है। जब भगवान कृष्ण रूक्मिणी का हरण करके लाए, तो रास्ते में रूक्मिणी के भाई रूक्मी से उनका युद्ध हुआ। भगवान कृष्ण ने रूक्मी का आधा गंजाकरके छोड़ दिया। अपने भाई का अपमान देख रूक्मिणी असहज हो गईं। द्वारिका पहुंचते ही, बलराम ने रूक्मिणी से कहा कि कृष्ण ने तुम्हारे भाई के साथ जो किया उसके लिए मैं तुमसे क्षमा मांगता हूं। तुम अब इस घर की सदस्य हो, तुम्हें यहां वैसा ही सम्मान मिलेगा, जैसा तुम्हें अपने परिवार में मिलना चाहिए। बलराम की इस बात से रूक्मिणी एकदम सहज हो गईं। परिवार में हर सदस्य का सम्मान वैसा ही हो, जिसका वो अधिकारी है। ये कृष्ण के जीवन से सीखा जा सकता है। 3- बिजनेस में आपको हमेशा दूरदर्शी होना पड़ेगा। किसी भी छोटी बात को अनदेखा नहीं करना चाहिए। कोई मामूली सी जानकारी भी किस दिन आपके लिए गेमचैंजर की भूमिका में आ जाए ये कोई नहीं जानता। इसका उदाहरण भी कृष्ण के जीवन में है। उज्जैन की राजकुमारी मित्रवृंदा भगवान कृष्ण की आठ रानियों में से एक थीं। मित्रवृंदा के भाई विंद और अनुविंद की सेना में एक मतवाला हाथी देखा, जिसका नाम था अश्वत्थामा। कृष्ण ने उसे याद रख लिया। सालों बाद, जब कुरुक्षेत्र में कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध लड़ा जा रहा था और द्रोणाचार्य कौरव सेना का नेतृत्व कर रहे थे। तब द्रोणाचार्य के वध के लिए उन्होंने अश्वत्थामा नाम के हाथी का उपयोग किया। विंद-अनुविंद दुर्योधन की ओर से लड़ रहे थे। तब उन्होंने युद्ध द्रोणाचार्य का ध्यान भटकाने के लिए भीम से अश्वत्थामा नाम के हाथी को मार कर घोषणा करने को कहा कि मैंने अश्वत्थामा को मार दिया। ये कूट नीति काम कर गई और द्रोणाचार्य ये समझे कि भीम ने उनके बेटे अश्वत्थामा को मार दिया। और, युद्ध से उनका ध्यान हट गया। वे ध्यान लगाकर बैठे और धृष्ट्रद्युम ने उन्हें मार दिया। 4- सामाजिक मामलों में कृष्ण का नजरिया बहुत आधुनिक रहा है। हर व्यक्ति को उनके इस नजरिए से सीख लेनी चाहिए। नरकासुर नाम के राक्षस ने 16100 महिलाओं को बंदी बना रखा था। वो उनसे बारी-बारी बलात्कार करता था। कृष्ण को जब ये पता चला तो उन्होंने नरकासुर को मार कर उन महिलाओं को छुड़वाया। वे अपने घर लौट गईं। कुछ समय बाद वे सब फिर लौटीं, क्योंकि बलात्कार पीड़ित होने के कारण उनके घर वाले उन्हें अपनाने को राजी नहीं थे। वे सब मर जाना चाहती थीं। भगवान कृष्ण ने उस समय एक क्रांतिकारी निर्णय लिया। उन्होंने सभी महिलाओं से कहा कि आज से वे कृष्ण की पत्नी कहलाएंगी। उन्हें पूरा सम्मान और सुविधाएं मिलेंगी। कृष्ण कहते हैं कि समाज में क्रांति लानी है, तो शुरुआत खुद ही करनी होगी। आप दूसरों के भरोसे समाज को नहीं बदल सकते।
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