भाईदूज का त्योहार क्यों मनाया जाता है, इसके पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है. द्वापर युग में जब भगवान श्री कृष्ण नरकासुर नाम के राक्षस का वध करने के बाद अपनी बहन सुभद्रा के पास आए, तो सुभद्रा ने श्री कृष्ण का मिठाई और फूलों के साथ स्वागत किया. इस दिन सुभद्रा ने भगवान श्रीकृष्ण का तिलक किया था. कहा जाता है कि तब से ही हर साल इस तिथि को भाईदूज के रूप में मनाने की परंपरा शुरू हुई. देश के अलग-अलग हिस्सों में यह त्योहार अलग-अलग रूपों में भी मनाया जाता है, जैसे दक्षिण भारत में लोग इस दिन को यम द्वितीया के रूप में मनाते हैं. शास्त्रों के अनुसार सूर्यदेव और पत्नी संज्ञा की दो संतानें थीं- एक पुत्र यमराज और दूसरी पुत्री यमुना. संज्ञा सूर्य का तेज सहन नहीं कर पा रही थी जिसके कारण अपनी छायामूर्ति का निर्माण किया और अपने पुत्र-पुत्री को सौंपकर वहां से चली गई. यम और यमुना दोनों भाई बहनों में बहुत प्रेम था। जानते हैं आगे की कथा... यमदेव अपनी बहन यमुना से बहुत प्रेम करते थे लेकिन काम की व्यस्तता के कारण अपनी बहन से मिलने नहीं जा पाते थे. एक दिन यम ने अपनी व्यस्तता से समय निकालकर अपनी बहन से मिलने का मन बनाया. जब यम देव अपनी बहन यमुना के घर पहुंचे तो उन्हें देखकर यमुना खुशी से प्रफुल्लित हो उठीं. जिसके बाद भाव विभोर होकर यमुना ने अपने भाई के लिए तरह-तरह व्यंजन बनाए और उनका आदर सत्कार किया. अपने प्रति बहन का इतना प्रेम देखकर यमराज को अत्यंत प्रसन्नता हुई. उन्होंने यमुना को खूब सारी भेंटें दीं. जब चलने का समय हुआ तो विदा लेते समय यमराज ने अपनी बहन यमुना से कहा कि अपनी इच्छा का कोई वरदान मांग लो. तब यमुना ने अपने भाई के इस आग्रह को सुनकर कहा कि,अगर आप मुझे कोई वर देना ही चाहते हैं तो यही वर दीजिए कि आज के दिन हर साल आप मेरे यहां आएंगे और मेरा आतिथ्य स्वीकार करेंगे और जो भी भाई इस दिन अपनी बहन का आतिथ्य स्वीकार करेंगे उन्हें अकाल मृत्यु का भय नहीं रहेगा. कहते हैं कि इसी के उपलक्ष्य में हर वर्ष भाईदूज का त्योहार मनाया जाता है. इसलिए मान्यता है कि इस दिन बहन का आतिथ्य स्वीकार करने वालों को अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है और यही कारण है कि इस दिन को यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है.
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