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भगवान शिव के त्रिशूल, डमरु, नाग, नंदी, त्रिपुंण किसके प्रतीक हैं और उन्हें कैसे प्राप्त हुए?

सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित हैं. भगवान शिव अपने भक्तों पर हमेशा कृपा बनाए रखते हैं और अपने भक्तों की भक्ति से जल्दी प्रसन्न होते हैं. भगवान शिव का रूप देखकर कई सारी चीजें उभर के सामने आती हैं. जिसमें नाग, त्रिपुंड, त्रिशूल, डमरू और नंदी हैं. इन सबको देखकर विचार आते हैं कि यह सब चीजें किस बात का प्रतीक हैं. तो आइए आज आपको बताते हैं भगवान शिव की इन चीजों के बारे में... त्रिशूल – मान्यता है कि सृष्टि के आरंभ में जब ब्रह्मनाद से भगवान शिव प्रकट हुए तो उनके साथ रज, तम और सत यह तीनों गुण भी प्रकट हुए थे. यही तीनों गुण शिव के तीन शूल यानी त्रिशूल बने. इनके बीच सांमजस्य बनाए बिना सृष्टि का संचालन संभव नहीं था. इसलिए शिव ने त्रिशूल रूप में इन तीनों गुणों को अपने हाथों में धारण किया. डमरू : जिस समय भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और नृत्य करते हैं उस समय उनके हाथों में डमरू होता है. इसका आकार रेत की घड़ी जैसा है जो दिन रात और समय के संतुलन का प्रतीक माना जाता है. इनका स्वरूप वैरागी का है तो दूसरा भोगी का है जो नृत्य करता है. नाग : भगवान शिव के गले में लिपटा हुए नाग का नाम वासुकी है. पुराणों में बताया है कि यह नागों के राजा हैं और नागलोक पर इनका शासन है. सागर मंथन के दौरान वासुकी ने ही रस्सी का काम किया था. कहा जाता है कि वासुकी शिव के परम भक्त थे. इनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने इन्हें अपने गले में आभूषण की तरह लिपेट त्रिपुंड : पुराणों में शिव जी के माथे पर भभूत से बनी 3 रेखाओं को तीन लोकों का प्रतीक माना जाता है. इसे रज, तम और सत गुणों का प्रतीक माना जाता है. पुराणों में उल्लेख है कि दक्ष प्रजापति के यज्ञ कुंड में सती के आत्मदाह होने के बाद शिव जी ने उग्र रूप धारण किया और माता सती की को कंधे पर लेकर त्रिलोक में हाहाकार मचाने लगे. तब भगवान विष्णु ने सती की देह को खंडित किया. जिसके बाद शिव जी नें अपने माथे पर हवन कुंड की राख मलते हुए सती की याद को त्रिपुंड रूप में माथे पर स्थान दे दिया. नंदी : पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव और नंदी एक ही हैं. भगवान शिव ने ही नंदी के रूप में जन्म लिया. कथा है कि शिलाद नाम के ऋषि मोह माया से मुक्त होकर तपस्या में लीन हो गए. उनके पूर्वजों को चिंता हुई कि ऐसा करने से उनका वंश नष्ट हो जाएगा. पूर्वजों की सलाह पर शिलाद ने शिव जी तपस्या करके एक अमर पुत्र को प्राप्त किया जो आज नंदी नाम से जाने जाते हैं.