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श्री कृष्ण और सुदामा की मित्रता

भारतीय परंपरा में मित्र का बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा है। जीवन में माता - पिता और गुरु के बाद मित्र को ही स्थान दिया जाता है। मित्र ही हमारे जीवन में एक ऐसा व्यक्ति होता है जिसके साथ हम अपने सुख-दुख को बांट सकते हैं। जीवन में कितनी भी कठोर परिस्थिति क्यों ना हो, मित्र हमेशा हमारा साथ देते हैं। हिन्दू सभ्यताओं में मित्रता को लेकर कई सारी कहानियां प्रचलित हैं और इन्हीं कहानियों में से एक है भगवान श्री कृष्ण और सुदामा की कहानी। जब मित्रता की बात आती है तो श्री कृष्ण और सुदामा की मित्रता की मिसाल दी जाती है और आज कई युगों बाद भी कृष्ण और सुदामा की दोस्ती के चर्चे सुनने को मिलते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्री कृष्ण और सुदामा की मित्रता आज भी एक मिसाल के रूप में देखी जाती है। बाल्यकाल में जब श्री कृष्ण, ऋषि संदीपनी के आश्रम में शिक्षा ग्रहण करने गए तो उनकी मित्रता सुदामा से हुई। श्री कृष्ण एक राज परिवार के राजकुमार थे और सुदामा गरीब ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे, लेकिन फिर भी श्री कृष्ण और सुदामा की मित्रता आज भी प्रसिद्ध है। शिक्षा-दीक्षा समाप्त होने के बाद श्री कृष्ण राजा बन गए और सुदामा का विवाह हो गया और वह गांव में ही धर्म - कर्म के कार्य करके अपना जीवन यापन करने लगे। विवाह के पश्चात उनके जीवन में कई सारी परेशानियां आने लगीं। जब सुदामा की पत्नी को पता चला कि राजा श्री कृष्ण सुदामा के मित्र हैं तो उन्होंने श्री कृष्ण से उनकी आर्थिक स्तिथि ठीक करने के लिए मदद मांगने को कहा और सुदामा को श्री कृष्ण से मिलने द्वारका भेजा। अपनी पत्नि की जिद के आगे सुदामा की एक न चली और वह श्री कृष्ण से मिलने द्वारका पहुंच गए। द्वारका को देख वे हैरान रह गए, वहां सभी लोग सुखी और संपन्न थे। सुदामा जैसे-तैसे कृष्ण के बारें में पूछते हुए महल तक पहुंच गए। जब पहरेदारों ने उनसे पूछा कि श्री कृष्ण से क्या काम है तो उन्होंने बताया कि श्री कृष्ण उनके मित्र हैं। सुदामा की यह दशा देखकर द्वारपाल हंसने लगे। थोड़ी देर बाद जब यह जानकारी द्वारपालों ने श्री कृष्ण को दी कि सुदामा नामक का ब्राह्मण उनसे मिलने आया है। तब श्री कृष्ण अपने मित्र के आने की खबर पाकर स्वयं ही नंगे पैर उनसे मिलने के लिए दौड़ पड़े। मित्र सुदामा की दयनीय हालत देखकर भगवान श्री कृष्ण के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें गले से लगा लिया और उन्हें अपने महल में लेकर गए। भगवान श्री कृष्ण ने सुदामा को अपने स्थान पर बैठाया और स्वयं नीचे बैठकर अपने आंसुओं से सुदामा के पैर धोए। यह घटना भगवान श्री कृष्ण का अपने मित्र सुदामा के प्रति अनन्य प्रेम को दर्शाती है, इसीलिए आज भी भगवान श्री कृष्ण और सुदामा की दोस्ती की मिसाल दी जाती है।