भगवान शिव से जुड़े देश भर में ऐसे कई स्थान हैं जो भोलेनाथ के चमत्कारों के गवाह रहे हैं। यूं तो देश की ज़्यादातर पहाडियों में कहीं न कहीं शिव जी का कोई न कोई स्थान मिल जाएगा, लेकिन भगवान शिव के निवास के रूप में सर्वमान्य है कैलाश पर्वत। एक ऐसी ही जगह है मणिमहेश। यह वह जगह है जहां भगवान शिव नें सदियों तक तपस्या की थी। इसके बाद से यह पहाड़ रहस्यमयी बन गया। हिमाचल प्रदेश के चंबा नगर से 85 किलोमीटर की दूरी पर बसा है मणिमहेश। मान्यता है कि भगवान शिव इन्हीं पहाड़ों में निवास करते हैं। हिमाचल की पीर पंजाल की पहाड़ियों के पूर्वी हिस्से में स्थित है मणिमहेश। यहां हज़ारों वर्षों से श्रद्धालु इस मनोरम तीर्थ की यात्रा कर रहे हैं। कहते हैं कि मणिमहेश पर्वत के शिखर पर भोर में एक प्रकाश उभरता है जो पर्वत की गोद में बनी झील में प्रवेश करता है। यह भगवान शंकर के कैलाश पर्वत पर बने आसन पर विराजमान होने का प्रतीक माना जाता है। यह अलौकिक प्रकाश उनके गले में धारण किये हुए शेषनाग की मणि का माना जाता है। इस अलौकिक दृश्य को देखने के लिए यात्री दूर-दूर से आते हैं। ब्रह्माणी कुंड में स्नान किए बिना मणिमहेश की यात्रा अधूरी मानी जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब मणिमहेश यात्रा पर गुरु गोरखनाथ अपने शिष्यों के साथ जा रहे थे तो भरमौर (तत्कालीन ब्रह्मापुर) में रुके थे। वही ब्रह्मापुर जिसे माता ब्रम्हाणी का निवास स्थान माना जाता था, मगर गुरु गोरखनाथ अपने नाथों एवं चौरासी सिद्धों सहित यहीं रुकने का मन बना चुके थे। वे भगवान भोलेनाथ की अनुमति से यहां रुक गए मगर जब माता ब्रम्हाणी अपने भ्रमण से वापस लौटीं तो अपने निवास स्थान पर नग्न सिद्धों को देख कर आग बबूला हो गईं। भगवान भोलेनाथ के आग्रह करने के बाद ही माता ने उन्हें रात्रि विश्राम की अनुमति दी और स्वयं यहां से 3 किलोमीटर ऊपर साहर नामक स्थान पर चली गईं, जहां से उन्हें नग्न सिद्ध नज़र न आएं मगर सुबह जब माता वापस आईं तो देखा कि सभी नाथ व चौरासी सिद्ध वहां लिंग का रूप धारण कर चुके थे जो आज भी इस चौरासी मंदिर परिसर में विराजमान हैं। यह स्थान चौरासी सिद्धों की तपोस्थली बन गया, इसलिए इसे चौरासी कहा जाता है। गुस्से से आग बबूला माता ब्रम्हाणी शिवजी भगवान के आश्वासन के बाद ही शांत हुईं।
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