हर साल फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जानकी जयंती मनाई जाती है। जानकी जयंती को सीता अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। जानकी जयंती के दिन माता सीता की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है। इस बार जानकी जयंती 24 फ़रवरी 2022, यानी आज है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को ही मिथिला नरेश राजा जनक की दुलारी सीता जी प्रकट हुई थीं। माता सीता को लक्ष्मी जी का ही स्वरूप माना जाता है। जानकी जयंती के दिन माता सीता की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है। माता सीता के साथ-साथ प्रभु श्री राम का भी पूजन किया जाता है। इस दिन माता सीता की पूजा के समय कपड़े और श्रृंगार का सामान अर्पित किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन माता सीता की पूजा करने से वैवाहिक जीवन की समस्याएं दूर हो जाती हैं। कैसे हुआ माता सीता का जन्म? रामायण के अनुसार, एक समय की बात है जब मिथिला के राजा जनक, यज्ञ के लिए खेत को जोत रहे थे। उसी समय एक क्यारी में दरार पड़ गई और उसमें से एक नन्ही बच्ची प्रकट हुई। उस समय राजा जनक की कोई संतान नहीं थी, उन्होंने कन्या को गोद में ले लिया। आपको बता दें कि हल को मैथिली भाषा में सीता कहा जाता है और यह कन्या हल चलाते हुए ही मिली थी, इसीलिए इनका नाम सीता रखा गया। सीता जयंती का महत्त्व माता सीता और प्रभु श्री राम जी को आदर्श पति-पत्नी के रूप में माना जाता है, इसलिए यह दिन सुहागिन स्त्रियों और कुंवारी कन्याओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जानकी जयंती के दिन व्रत रखने से वैवाहिक जीवन से जुड़ी सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं। सुहागिन महिलाओं के लिए तो यह दिन बेहद ख़ास होता है क्योंकि सीता अष्टमी के दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र की कामना के लिए व्रत करती हैं और माता जानकी को श्रृंगार का सामान अर्पित करती हैं। साथ ही यह भी माना जाता है कि अगर कुंवारी कन्याएं इस दिन व्रत करें, तो उन्हें मनचाहे वर की प्राप्ति होती है। साथ ही अगर किसी कन्या के विवाह में कोई बाधा आ रही हो तो उसे भी यह व्रत करना चाहिए। ऐसा करने से विवाह से जुड़ी सभी बाधाएं दूर हो सकती हैं। जानकी जयंती पर मंदिरों में भगवान श्री राम और माता सीता की पूजा की जाती है। ऐसे करें सीता अष्टमी और पूजन • सीता अष्टमी के दिन सुबह स्नान आदि करके माता सीता और भगवान श्रीराम को प्रणाम कर व्रत करने का संकल्प लें। • माता सीता और प्रभु श्री राम की पूजा-अर्चना करें। • सबसे पहले व्रती, गणपति भगवान और माता अंबिका की पूजा करें। • माता सीता और भगवान श्री राम की पूजा करते समय पीले फूल, वस्त्र और सोलह श्रृंगार का सामान माता सीता को चढाएं। • भोग में पीली चीज़ों को अर्पित करें और आरती करें। • दूध-गुड़ से बने व्यंजन का दान करें। • शाम को पूजा करके इसी व्यंजन को ग्रहण कर व्रती अपना व्रत खोलें।
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