रंगभरी एकादशी, एक मात्र ऐसी एकादशी है, जिस दिन भगवान विष्णु की पूजा के अलावा भगवान शिव और माता पार्वती की भी पूजा की जाती है। हर साल फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रंगभरी एकादशी मनाई जाती है। रंगभरी एकदाशी को आंवला एकादशी भी कहते हैं। इस बार रंगभरी एकादशी 14 मार्च दिन सोमवार को है। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग और पुष्य नक्षत्र का सुंदर संयोग बना है। रंगभरी एकादशी पर सर्वार्थ सिद्ध योग प्रात: 06 बज कर 32 मिनट से बन रहा है, इस योग में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करके आप अपनी मनोकामनाएं सिद्ध कर सकते हैं। आइए जानते हैं कि रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा क्यों करते हैं? इस दिन करते हैं शिव-पार्वती की पूजा 14 मार्च को रंगभरी एकादशी पर शिव-पार्वती की पूजा की जाएगी। इस अवसर पर वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर में विशेष पूजा अर्चना की जाती है। इस दिन भगवान शिव, रंग-गुलाल से सराबोर रहते हैं। काशी के राजा बाबा विश्वनाथ, माता गौरा संग पालकी में सवार होकर नगर भ्रमण करते हैं। इस दिन शिव भक्त, भगवान शिव और माता पार्वती का स्वागत लाल-गुलाबी गुलाल से करते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, रंगभरी एकादशी के दिन ही भगवान शिव, माता पार्वती को पहली बार अपनी नगरी काशी में लेकर आए थे। कहा जाता है कि माता पार्वती से ब्याह के बाद पहली बार शिव जी गौना करा कर माता पार्वती के संग काशी नगरी आए थे। तब शिव गणों और भक्तों ने उनका स्वागत रंग-गुलाल से किया था, क्योंकि उस समय फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी थी। पूरी शिव नगरी रंग-गुलाल से भर गई थी। चारों ओर ख़ुशहाली और उत्सव का माहौल था। इस वजह से यह दिन रंगभरी के नाम से प्रसिद्ध है। हर साल रंगभरी एकादशी पर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है और पूरे नगर में शिव बारात निकाली जाती है। भगवान शिव माता, गौरा को नगर भ्रमण कराते हैं। इस दौरान पूरी काशी ‘हर हर महादेव’ के नारों से गूंज उठती है।
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