सनातन धर्म में भगवान शिव के अनेक भक्त हैं। इन भक्तों में से एक रावण भी थे, जिन्होंने शिव तांडव स्त्रोत की रचना की थी। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, एक बार अहंकार में आकर रावण ने कैलाश पर्वत उठाने की कोशिश की, परंतु भगवान शिव ने उसे अपने अंगूठे से दबा दिया, जिसमें रावण के हाथ कैलाश पर्वत के नीचे दब गए। दर्द से कराहते रावण ने उसी समय भगवान शिव के लिए शिव तांडव स्तोत्र की रचना की। इस रचना में 17 श्लोक हैं। रावण ने इस स्तोत्र को भगवान शिव के समक्ष गाया। जिससे भगवान भोलेनाथ प्रसन्न हो गए। क्या है शिव तांडव स्तोत्र के फायदे और विधि, आइये जानते हैं… शिव तांडव स्तोत्र के फायदे और विधि मान्यता है कि जो व्यक्ति नियमित रूप से शिव तांडव स्त्रोत का पाठ करता है, उसे कभी धन-धान्य की कमी नहीं होती है। नियमित रूप से शिव तांडव स्त्रोत का पाठ करने से साधक का आत्मबल मजबूत होता है, चेहरा तेजमय होता है और साथ ही उत्कृष्ट व्यक्तित्व भी प्राप्त होता है। शिव तांडव स्त्रोत का विधि-विधान से पाठ करने पर मनुष्य को वाणी की सिद्धि भी प्राप्त हो सकती है। भगवान भोलेनाथ नृत्य, चित्रकला, लेखन, योग, ध्यान, समाधी, आदि सिद्धियों को प्रदान करने वाले देवता हैं। इसलिए शिव तांडव स्त्रोत का पाठ करने से इन सभी विषयों में सफलता प्राप्त होती है। यह भी माना जाता है कि शिव तांडव स्त्रोत का पाठ करने से कुंडली में लगे कालसर्प दोष, शनिदेव के बुरे प्रभाव और पितृ दोष जैसी समस्याओं से भी छुटकारा मिलता है। पूजा विधि धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, शिव तांडव स्तोत्र का पाठ सुबह या फिर शाम के समय करना सर्वश्रेष्ठ माना गया है। सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। उसके बाद भगवान शिव को प्रणाम करके धूप, दीप और नैवेद्य से उनकी पूजा करें। शिव तांडव स्तोत्र का पाठ हमेशा तेज आवाज में और गाकर करें। पूजा-पाठ संपूर्ण होने के बाद भगवान शिव का ध्यान करें। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि जब आप शिव तांडव स्तोत्र का पाठ कर रहे हों, तो उस समय आपके मन में किसी के प्रति दुर्भावना न हो, क्योंकि यह पाठ अत्यंत शक्तिशाली और ऊर्जावान है।
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