सावन, केवल प्रकृति में ही नहीं, बल्कि लोगों के जीवन में भी हरियाली लाता है। प्राकृतिक बारिश के साथ-साथ शिव भक्ति की बारिश भी इस माह में देखने हो मिलती है। सावन मास में शिवरात्रि के साथ-साथ कई व्रत और तिथि हैं जिनका विशेष महत्व माना गया है। उन्हीं में से एक है प्रदोष व्रत। यह व्रत हिंदू धर्म में दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है। वैसे तो हर महीने प्रदोष व्रत का उपवास रखा जाता है, लेकिन सावन मास में पड़ने वाले प्रदोष व्रत का अत्यधिक महत्व होता है। अगर प्रदोष व्रत, सोमवार के दिन पड़े तो इसे सोम प्रदोष व्रत कहा जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सावन में आने वाले सोम प्रदोष व्रत का विशेष महत्व माना गया है। माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव की सच्चे मन से उपासना करने पर जीवन में कभी परेशानियां नहीं रहती हैं। और इस बार सावन का पहला सोम प्रदोष व्रत आज, यानी कि 25 जुलाई को है। सोम प्रदोष व्रत तिथि श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि शाम 4 बजकर 15 मिनट से प्रारंभ होकर अगले दिन यानी 26 जुलाई को शाम 6 बजकर 4 मिनट तक रहेगी। 25 जुलाई की शाम 07 मिनट से लेकर रात 9 बजकर 21 मिनट तक भगवान शिव की पूजा का शुभ मुहूत है.... प्रदोश व्रत का महत्व सावन में पड़ने वाले सोम प्रदोष व्रत को बहुत शुभ और महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन शिव जी की उपासना करने से लो लोगों के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और मत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। ऐसी मान्यता है कि एक प्रदोष व्रत करने का फल दो गायों के दान जितना होता है। इस व्रत के महत्व को वेदों के महाज्ञानी सूत जी ने गंगा नदी के तट पर शौनकादि ऋषियों को बताया था। उन्होंने कहा था कि, “कलियुग में जब अधर्म का बोल-बाला रहेगा, तब लोग धर्म के रास्ते को छोड़, अन्याय की राह पर जा रहे होंगे। उस समय प्रदोष व्रत का व्रत रखा जाएगा। जिसके द्वारा लोग शिव जी की आराधना कर, अपने पापों का प्रायश्चित करेंगे और अपने सारे कष्टों को दूर कर सकेगें।” सोम प्रदोष पूजन विधि कहते हैं कि वैसे तो भगवान शिव की पूजा प्रात: काल के समय में ही कर ली जाती है। लेकिन प्रदोष व्रत की पूजा शाम के समय, सूर्यास्त से 45 मिनट पहले और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक करने का विधान है। प्रदोष व्रत के दिन स्नान आदि से निवृत्त होकर घर की सफाई करें और उसके बाद मंदिर में दीया जलाएं और भगवान शिव को साक्षी मानकर प्रदोष व्रत और शिव पूजा का संकल्प लें। शाम के समय शुभ मुहूर्त में भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा करें। दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल से पंचामृत बनाएं और भगवान शिव का अभिषेक करें। शिवलिंग पर सफेद फूल, बेलपत्र, धतूरा, भांग, नैवेद्य, शमी के पत्ते, फल, चंदन, अक्षत आदि अर्पित करें। इसके पश्चात शिव चालीसा और सोम प्रदोष व्रत कथा का पाठ करें। उसके बाद शिव जी की आरती से पूजा का समापन कर, भगवान शिव से अपनी मनोकामना पूर्ण करने की कामना करें। अगर प्रदोष व्रत के दिन भक्त इस विधि-विधान के साथ पूजा करते हैं, तो भगवान शिव उन पर अवश्य प्रसन्न होते हैं और अपनी कृपा बरसाते हैं।
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