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भगवान कृष्ण के प्राकट्य दिवस को क्यों कहते हैं जन्माष्टमी? मनोकामना के अनुसार किस मूर्ति की करें स्थापना?

मथुरा और वृंदावन सहित पूरे देश में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की तैयारियां जोरों पर हैं। भक्त अपने आराध्य भगवान श्रीकृष्ण के प्रकट होने का इंतजार कर रहे हैं। लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिवस को जन्माष्टमी क्यों कहा जाता है? उनकी मूर्ति को कैसे सजाना है? उनको क्या खिलाना है? आइए आपको सब बताते हैं। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को हुआ था। इस दिन पूरी दुनिया में उनका जन्मदिन मनाया जाता है। भगवान कृष्ण का प्राकट्य रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। इस अवसर पर उनके अलग अलग स्वरूपों की स्थापना की जाती है। कहीं शालिग्राम के रूप में तो कहीं लड्डू गोपाल के रूप में और कहीं राधाकृष्ण के रूप में। इस दिन व्रत और उपवास रखकर श्रीकृष्ण की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। कहते हैं कि जन्माष्टमी के दिन अलग-अलग कामनाओं के लिए कान्हा की अलग तरह की छवि की उपासना की जाती है। कोई बाल गोपाल चुनता है तो कोई राधा के साथ रास करते कान्हा को चुनता है तो कोई गोवर्धन पर्वत उठाए तो कोई बांसुरी बजाते कान्हा की मूर्ति को चुनता है। मतलब आपकी जैसी मनोकामना, वैसा भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति का स्वरुप। अगर आप भी अपनी मनोकामना के मुताबिक कृष्ण की मूर्ति चुनेंगे और उसकी उपासना करेंगे तो इस जन्माष्टमी पर निश्चित ही आपकी कामना पूरी होगी। अब सवाल उठता है कि जन्माष्टमी के दिन किस तरह से भगवान श्रीकृष्ण को प्रसन्न करें? इस दिन सबसे पहले सुबह स्नान कर व्रत या पूजा का संकल्प लें। फिर पूरे दिन फलाहार पर रहें या फिर सात्विक रहें। मध्यरात्रि को भगवान् कृष्ण की धातु की प्रतिमा को किसी पात्र में रखें। उस प्रतिमा को पहले दूध ,फिर दही से, इसके बाद शहद से ,फिर शक्कर से और अंत में घी से स्नान कराएं। इसी को पंचामृत स्नान कहते हैं, फिर कान्हा को जल से स्नान कराएं। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण को पीताम्बर , पुष्प और प्रसाद अर्पित करें। यहां इतना ध्यान रखें कि अर्पित की जाने वाली चीजें शंख में डालकर ही अर्पित करें। पूजा करने वाला व्यक्ति इस दिन काले या सफेद वस्त्र धारण ना करें। मनोकामना के अनुसार मंत्र जाप करें, प्रसाद ग्रहण करें और दूसरों में भी भी बांटें।