हिन्दू धर्म में हर एक दिन का अपना एक महत्व माना गया है। हर एक पर्व किसी न किसी तिथि पर ही पड़ता है, क्योंकि हिन्दू पंचांग के अनुसार, 15 तिथियां (प्रतिपदा से लेकर अमावस्या या पूर्णिमा तक) मानी गयी हैं, जिनकी पुनः आवृत्ति होती रहती है। इसी तरह भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ऋषि पंचमी का पर्व मनाया जाता है। यह पंचमी, गणेश चतुर्थी के अगले दिन पड़ती है। इस बार ऋषि पंचमी आज यानी कि 1 सिंतबर को है। ऋषि पंचमी को गुरु पंचमी अथवा भाई पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। ऋषि पंचमी पर सप्तऋषियों की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। पौराणिक मान्यता है कि ऋषि पंचमी के दिन उपवास रखने से पापों से मुक्ति मिलती है और साथ ही ऋषियों का आशीर्वाद भी मिलता है। आइए जानते हैं ऋषि पंचमी से जुड़ी कुछ जरूरी बातें...
व्रत का महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ऋषि पंचमी के दिन सप्तर्षियों की विशेष पूजा की जाती है। महिलाएं इस दिन उपवास रखती हैं तथा सुख, समृद्धि और शांति की कामना करती हैं। ऐसी मान्यता है कि महिलाओं को ऋषि पंचमी का व्रत करने से मासिक धर्म के दौरान भोजन को दूषित करने के पाप से मुक्ति मिलती है। मान्यता है कि स्त्रियों को मासिक धर्म के दौरान काम करने से रजस्वला दोष लगता है। अगर महिलाएं, ऋषि पंचमी का व्रत करती हैं तो वो रजस्वला दोष से मुक्त हो जाती हैं। इसलिए यह व्रत स्त्रियों के लिए उपयोगी और कल्याणकारी माना जाता है।
ऋषि पंचमी की कथा -
भविष्यपुराण की एक कथा के अनुसाार एक उत्तक नाम का ब्राह्म्ण अपनी पत्नी सुशीला के साथ रहता था। उसके एक पुत्र और पुत्री थी। दोनों ही विवाह योग्य थे। पुत्री का विवाह उत्तक ब्राह्मण ने सुयोग्य वर के साथ कर दिया, लेकिन कुछ ही दिनों के बाद उसके पति की अकाल मृत्यु हो गई। इसके बाद उसकी पुत्री मायके वापस आ गई। एक दिन विधवा पुत्री अकेले सो रही थी, तभी उसकी मां ने देखा की पुत्री के शरीर पर कीड़े उत्पन्न हो रहे हैं। अपनी पुत्री का ऐसा हाल देखकर उत्तक की पत्नी व्यथित हो गई। वह अपनी पुत्री को पति उत्तक के पास लेकर आई और बेटी की हालत दिखाते हुए बोली कि, ‘मेरी साध्वी बेटी की ये गति कैसे हुई'? तब उत्तक ब्राह्मण ने ध्यान लगाने के बाद देखा कि पूर्वजन्म में उनकी पुत्री ब्राह्मण की पुत्री थी, लेकिन राजस्वला के दौरान उससे गलती हो गई और उसने ऋषि पंचमी का व्रत भी नहीं किया था। इस वजह से उसे ये पीड़ा हुई है। फिर पिता के बताए अनुसार पुत्री ने इस जन्म में इन कष्टों से मुक्ति पाने के लिए पंचमी का व्रत किया। इस व्रत को करने से उत्तक की बेटी को अटल सौभाग्य की प्राप्ति हुई।