“अधूरा जिनके बिना श्रीकृष्ण का नाम है, राधा हैं वे, जिनका निवास बरसाना धाम है।” राधा अथवा राधिका, हिन्दू धर्म की प्रमुख देवी हैं। वे कृष्ण की संगिनी के रूप में चित्रित की जाती हैं। इस प्रकार उन्हें राधाकृष्ण के रूप में पूजा जाता है। राधा रानी के बिना श्रीकृष्ण की पूजा अधूरी मानी गई है। धार्मिक मान्यता है कि श्रीराधाष्टमी के व्रत के बिना श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के व्रत का पूरा पुण्य प्राप्त नहीं होता है। राधाष्टमी के दिन राधा और कृष्ण दोनों की पूजा की जाती है।
पौराणिक मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण की प्रिय राधा रानी का जन्मदिन भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को ‘राधाष्टमी’ के रूप में मनाया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिन यानी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के 15वें दिन राधाष्टमी का उत्सव मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, राधा रानी, श्रीकृष्ण से 11 माह बड़ी थीं। राधा रानी के जन्मदिवस पर पूरे मथुरा में उत्सव मनाया जाता है। इस दिन बरसाना में राधा रानी के मंदिर को बड़े उत्साह के साथ सुसज्जित किया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण के साथ राधारानी का श्रृंगार, आरती और पूजन भी किया जाता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस बार 3 सितंबर, दिन शनिवार को दोपहर 12 बजकर 28 मिनट पर भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि प्रारंभ होगी और इस तिथि का समापन अगले दिन 4 सिंतबर दिन रविवार को सुबह 10 बजकर 39 मिनट पर होगा। इसलिए हिंदू पंचांग के अनुसार राधाष्टमी 4 सितबर को मनाई जाएगी।
राधा अष्टमी पूजन विधि
अन्य व्रतों की भांति इस दिन भी प्रात: उठकर स्नानादि क्रियाओं से निवृत होकर श्री राधा जी का विधिवत पूजन करना चाहिए। इस पूजन हेतु मध्याह्न का समय उपयुक्त माना गया है। इस दिन पूजन स्थल में ध्वजा, पुष्पमाला,वस्त्र, पताका, तोरणादि व विभिन्न प्रकार के मिष्ठान्नों एवं फलों से श्री राधा जी की स्तुति करनी चाहिए। पूजन स्थल में पांच रंगों से मंडप सजाएं, उनके भीतर षोडश दल के आकार का कमलयंत्र बनाएं, उस कमल के मध्य में दिव्य आसन पर श्री राधा कृष्ण की युगलमूर्ति पश्चिमाभिमुख करके स्थापित करें। बंधु बांधवों सहित अपनी सामर्थ्यानुसार पूजा की सामग्री लेकर भक्तिभाव से भगवान की स्तुति गाएं। दिन में हरिचर्चा में समय बिताएं तथा रात्रि को नाम संकीर्तन करें। एक समय फलाहार करें और मंदिर में दीपदान करें।
राधाष्टमी एक महोत्सव है, जो अपने साथ भक्तों के लिए भक्तिप्रेम और उमंगों की बहार लेकर आता है। अगर इस दिन श्रद्धापूर्वक राधाष्टमी का व्रत किया जाए, तो व्रती को राधा रानी और श्रीकृष्ण, दोनों की कृपा प्राप्त होती है। कहते हैं कि उन्हें सुख, शांति और समृद्धि के साथ-साथ माता लक्ष्मी की कृपा भी प्राप्त होती है।