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उत्तराखंड के पौड़ी में स्थित सिद्धबलि मंदिर क्यों है इतना खास?

Uttrakhand: उत्तराखंड के पौड़ी जिले मे स्थित कोटद्वार को गढ़वाल का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है,यहीं हनुमान जी का अलौकिक मंदिर स्थित है,बता दे वैसे तो देशभर मे हनुमान जी के कई चमत्कारी मंदिर है,पर खो नदी के किनारे 40 मीटर ऊँचे टीले पर बना हनुमान जी का यह मंदिर अपने किस्से और कहानियों के लिए काफी प्रसिद्ध है।

माना जाता है कि शिव का अवतार कहे जाने वाले गुरु गोरखनाथ जी को इसी स्थान पर सिद्धि प्राप्त हुई थी,और हनुमान जी ने उन्हें यहाँ दर्शन दिए थे।बता दे बजरंगबली के इस प्राचीन मंदिर का जिक्र स्कंदपुराण मे भी किया गया है,मानना है कि बजरंगबली संजीवनी बूटी लेने भी इसी मार्ग से गए थे,80 के दशक मे जब इस मंदिर का निर्माण शुरू हुआ था उस समय इस मंदिर मे कुछ सिद्ध पत्थर मिले थे,जो आज भी मंदिर के अंदर स्थापित है,

कहा जाता है,कि बाबा गोरखनाथ की यह तपोस्थली भी है,इस स्थान पर बाबा गोरखनाथ ने कड़ी तपस्या की थी,जिसके पश्चात् उन्हें यहाँ सिद्धियां प्राप्त हुई थी।

गोरखपुराण के अनुसार,बाबा गोरखनाथ जी के गुरु श्रीमद सेंध नाथ जी हनुमान जी की आज्ञा से त्रियाराज की राजकुमारी रानी मैनाकनी के साथ गृहस्थ जीवन का सुख भोग रहे थे।इसके पश्चात् जब गुरु गोरखनाथ को इस बात का पता चला तो वह अपने गुरु को इस बंधन से मुक्त कराने के लिए निकले,उस वक़्त हनुमान जी ने अपना रूप बदलकर बाबा गोरखनाथ का रास्ता रोकने का प्रयास किया,इस बीच हनुमान जी और बाबा गोरखनाथ के बीच युद्ध छिड़ गया,इस युद्ध दोनों मे से कोई भी पराजित नहीं हुआ।

 युद्ध के बाद हनुमान जी ने अपने अवतार मे आकर बाबा गोरखनाथ को दर्शन दिए,और उनसे वरदान मांगने को कहा।तब सिद्ध बाबा गोरखनाथ जी ने बजरंग बलि से इसी स्थान पर रहने की प्रार्थना की,इस घटना की बाद ही इस स्थान का नाम सिद्धबली पड़ा।

अब इस स्थान पर हनुमान पहरी के रूप मे अपने भक्तों की रक्षा करते है।

 यहाँ के स्थानीय अनुसार बताया जाता है कि ब्रिटिश काल मे एक अफसर सिद्धबली मंदिर की तरफ से गुज़र रहा था,देर होने की वजह से वे रात को इसी मंदिर पर रुक गया था,ऑफिसर के अनुसार उसे एक सपना आया जिसमे सिद्ध बाबा की समाधी के पास ही इस मंदिर को बनवाया जाए,ये सपना उसने स्थानीय लोगों को बताया और फिर स्थानीय लोगों ने मिलकर इस भव्य मंदिर का निर्माण करवाया 

इस मंदिर के अंदर एक शनिदेव का मंदिर भी स्थित है।कहा जाता है,कि जहाँ-जहाँ हनुमान जी का मंदिर होता है साथ मे शनिदेव का भी वहां स्थान होता है,इसका कारण एक कहानी मे छुपा हुआ हैं,जब हनुमान जी माता सीता की खोज मे लंका पहुंचे तब एक कारागार मे शनिदेव भी नज़र आये थे,जो कि उलटे लटके हुए थे,जब हनुमान जी ने शनिदेव को उल्टा लटका देखा तो उन्होंने उनसे कारण पूछा,तब शनिदेव ने बताया की रावण ने अपने योग बल से कई और ग्रहों को कैद किया है,यह सुनकर हनुमान जी ने रावण की कैद से शनिदेव को आज़ादी दिलाई।

हनुमान जी से प्रसन्न होकर शनिदेव ने हनुमान जी से वरदान मांगने को कहा,तब हनुमान जी ने अपने भक्तों के लिए एक वचन माँगा कि कलयुग मे शनिदेव हनुमान भक्तों को अशुभ फल नहीं देंगे,तभी से हनुमान जी के भक्त शनिदेव की कुदृष्टि से बचे रहते है मंदिर

 उत्तराखंड के पौड़ी जिले मे स्थित कोटद्वार को गढ़वाल का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है,यहीं हनुमान जी का अलौकिक मंदिर स्थित है,बता दे वैसे तो देशभर मे हनुमान जी के कई चमत्कारी मंदिर है,पर खो नदी के किनारे 40 मीटर ऊँचे टीले पर बना हनुमान जी का यह मंदिर अपने किस्से और कहानियों के लिए काफी प्रसिद्ध है।

माना जाता है कि शिव का अवतार कहे जाने वाले गुरु गोरखनाथ जी को इसी स्थान पर सिद्धि प्राप्त हुई थी,और हनुमान जी ने उन्हें यहाँ दर्शन दिए थे।बता दे बजरंगबली के इस प्राचीन मंदिर का जिक्र स्कंदपुराण मे भी किया गया है,मानना है कि बजरंगबली संजीवनी बूटी लेने भी इसी मार्ग से गए थे,80 के दशक मे जब इस मंदिर का निर्माण शुरू हुआ था उस समय इस मंदिर मे कुछ सिद्ध पत्थर मिले थे,जो आज भी मंदिर के अंदर स्थापित है,

कहा जाता है,कि बाबा गोरखनाथ की यह तपोस्थली भी है,इस स्थान पर बाबा गोरखनाथ ने कड़ी तपस्या की थी,जिसके पश्चात् उन्हें यहाँ सिद्धियां प्राप्त हुई थी।

गोरखपुराण के अनुसार,बाबा गोरखनाथ जी के गुरु श्रीमद सेंध नाथ जी हनुमान जी की आज्ञा से त्रियाराज की राजकुमारी रानी मैनाकनी के साथ गृहस्थ जीवन का सुख भोग रहे थे।इसके पश्चात् जब गुरु गोरखनाथ को इस बात का पता चला तो वह अपने गुरु को इस बंधन से मुक्त कराने के लिए निकले,उस वक़्त हनुमान जी ने अपना रूप बदलकर बाबा गोरखनाथ का रास्ता रोकने का प्रयास किया,इस बीच हनुमान जी और बाबा गोरखनाथ के बीच युद्ध छिड़ गया,इस युद्ध दोनों मे से कोई भी पराजित नहीं हुआ।

 युद्ध के बाद हनुमान जी ने अपने अवतार मे आकर बाबा गोरखनाथ को दर्शन दिए,और उनसे वरदान मांगने को कहा।तब सिद्ध बाबा गोरखनाथ जी ने बजरंग बलि से इसी स्थान पर रहने की प्रार्थना की,इस घटना की बाद ही इस स्थान का नाम सिद्धबली पड़ा।

अब इस स्थान पर हनुमान पहरी के रूप मे अपने भक्तों की रक्षा करते है।

 यहाँ के स्थानीय अनुसार बताया जाता है कि ब्रिटिश काल मे एक अफसर सिद्धबली मंदिर की तरफ से गुज़र रहा था,देर होने की वजह से वे रात को इसी मंदिर पर रुक गया था,ऑफिसर के अनुसार उसे एक सपना आया जिसमे सिद्ध बाबा की समाधी के पास ही इस मंदिर को बनवाया जाए,ये सपना उसने स्थानीय लोगों को बताया और फिर स्थानीय लोगों ने मिलकर इस भव्य मंदिर का निर्माण करवाया 

इस मंदिर के अंदर एक शनिदेव का मंदिर भी स्थित है।कहा जाता है,कि जहाँ-जहाँ हनुमान जी का मंदिर होता है साथ मे शनिदेव का भी वहां स्थान होता है,इसका कारण एक कहानी मे छुपा हुआ हैं,जब हनुमान जी माता सीता की खोज मे लंका पहुंचे तब एक कारागार मे शनिदेव भी नज़र आये थे,जो कि उलटे लटके हुए थे,जब हनुमान जी ने शनिदेव को उल्टा लटका देखा तो उन्होंने उनसे कारण पूछा,तब शनिदेव ने बताया की रावण ने अपने योग बल से कई और ग्रहों को कैद किया है,यह सुनकर हनुमान जी ने रावण की कैद से शनिदेव को आज़ादी दिलाई।

हनुमान जी से प्रसन्न होकर शनिदेव ने हनुमान जी से वरदान मांगने को कहा,तब हनुमान जी ने अपने भक्तों के लिए एक वचन माँगा कि कलयुग मे शनिदेव हनुमान भक्तों को अशुभ फल नहीं देंगे,तभी से हनुमान जी के भक्त शनिदेव की कुदृष्टि से बचे रहते है।