पौड़ी(उत्तराखंड): कहा जाता है कि हमारे देव पहाड़ों में बसे हुए है, पर पौड़ी गढ़वाल जिले के कोटद्वार शहर से 14 किलोमीटर दूर भाबर क्षेत्र की मालन घाटी स्थित महर्षि कण्व, विश्वामित्र और दुर्वासा जैसे ऋषि मुनियों की तपस्थली और देश का नाम देने वाले हस्तिनापुर के चक्रवर्ती सम्राट भरत की जन्मस्थली कण्वाश्रम एक प्रसिद्ध प्रमुख एतिहासिक धरोहर व धार्मिक स्थान है, जो हेमकूट और मणिकूट पर्वतों की गोद में स्थित ऐतिहासिक तथा पुरातात्विक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थल है।
यह स्थान ऋषी मुनियों की तपस्थली भी था, जहॉं वे साधना में लीन, मोक्ष की प्राप्ति के लिए कठोर तप करते थे, मालिनी नदी के तट पर कण्वाश्रम, जो किसी काल में एक समृद्ध गुरुकुल था, आज एक छोटा सा आश्रम है। इस नवीन आश्रम में पांच प्रतिमाएं हैं जिनमें - कण्व ऋषि, कश्यप ऋषि, शकुंतला, दुष्यंत एवं पांचवी प्रतिमा भरत की है जिन्हें शेर के दांत गिनते दिखाया गया है।
कण्वाश्रम में लोग प्रकृति की छांव में सुकून को तराशने आते है बता दे हिमालय की तलहटी पर ऋषि विश्वामित्र का आश्रम था। एक बार ऋषि विश्वामित्र की कठोर तपस्या से स्वर्ग के राजा इंद्र अत्यंत विचलित हो गए थे। उनकी तपस्या भंग करने के लिए इंद्र ने स्वर्ग की अप्रतिम सुन्दरी, अप्सरा मेनका को धरती पर भेजा। मेनका विश्वामित्र की तपस्या भंग कर उन्हें अपने मोहपाश में बांधने में सफल हो गयी। विश्वमित्र व मेनका अप्सरा के प्रणय संबंधों से उत्पन्न कन्या शकुंतला को मेनका ऋषि विश्वामित्र के आश्रम के समीप स्थित ऋषि कण्व के आश्रम के आस-पास जंगल में छोड़ वापस स्वर्ग चली गई थी।
मां को खुद से दूर जाता देख शकुंतला रोने लगी इसके बाद जंगल में तपस्या में लीन महर्षि कण्व ने जब बच्चे के रोने की आवाज सुनी, तो वहां पहुंचे। उन्हें वहां एक सुंदर नवजात कन्या दिखी जो शाकुंत पक्षियों से घिरी थी। महर्षि कण्व बच्ची को आश्रम ले आए व उसको शकुंतला नाम दिया और उसका लालन-पालन किया। शकुंतला जंगल के पशु-पक्षियों के सानिध्य में बड़ी हुई।
एक दिन हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत कण्वाश्रम के आसपास के वन में शिकार करते हुए भटक गए और कण्वाश्रम जा पहुंचे। वहां उनकी भेंट शकुंतला से हुई। कण्व ऋषि तीर्थ यात्रा पर थे। शकुन्तला ने राजा दुष्यंत की आवभगत की। वे उसके संस्कारों व सुंदरता से प्रभावित हुए और दोनों में प्रेम उत्पन्न हुआ, उन्होंने शकुंतला से गंधर्व विवाह किया। दुष्यंत ने वापिस जाते हुए शकुन्तला को अंगूठी पहनाई और कहा कि हस्तिनापुर आकर मिले।
कुछ समय बाद शकुंतला ने एक अत्यंत सुंदर व तेजस्वी बालक को जन्म दिया। जिसका नाम भरत रखा गया। भरत को सर्वदमन भी कहा जाता है क्योंकि कण्वाश्रम में उनका वर्चस्व था। वीर बालक का बचपन “कण्वाश्रम” में सिंह,पशु पक्षी के साथ खेलकर व दूसरों का सम्मान व्यतीत करके बीता,भारत पर लिखी प्रत्येक इतिहास की पुस्तक इस स्तोत्र से आरम्भ होती है
दूसरी ओर शकुंतला राजा दुष्यंत के दुःख में व्याकुल थी। दुष्यंत ने वापिस जाते हुए शकुन्तला को जो अंगूठी पहनाई थी वह एक दिन नदी में गिर गई और उसे मछली निगल गई। जब शकुन्तला राजा से मिली तो दुष्यंत ने उसे पहचाना ही नहीं। उधर एक मछुवारे को, उस मछली के पेट से वह अंगूठी मिली, उसने अंगूठी बेचने की कोशिश की तो राजा के सिपाहियों ने उसे पकड़ कर राजा दुष्यंत के सामने पेश किया। राजा ने जब अंगूठी देखी तो उन्हें सब याद आ गया। शकुन्तला की खोज की गई और राजा दुष्यंत ने उसे अपनी रानी बना लिया।