हरिद्वार: पूर्णिमा के श्राद्ध के साथ पितृपक्ष को मनाने के लिए धरती पर तीन स्थान बताए गए हैं. पहला बदरीनाथ धाम, दूसरा हरिद्वार में नारायणी शिला और तीसरा स्थान है गया.
हरिद्वार की नारायणी शिला पर पितरों का तर्पण करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है, हरिद्वार में स्थित नारायणी शिला पर पितरों का श्राद्ध एवं पिंडदान करने के लिए भीड़ उमड़ रही है। श्राद्ध करवाने के लिए ब्राह्मणों को घंटों इंतज़ार करना पड़ रहा है। श्राद्ध पक्ष में पूर्वजों की आत्मशांति के लिए 16 दिनों तक नियम के अनुसार विधि-विधान से पूजा करने की विधा है।
बता दे हरिद्वार के गंगा घाटों में अधिक से अधिक लोग पितरो के आत्म तृप्ति के लिए तर्पण करने जा रहे है। पितरों के लिए निर्मित नारायणबलि और कर्मकांड संम्पन करवाने से स्वयं का भी कल्याण होता है। मान्यता है, श्रीहरि के कंठ से लेकर नाभि तक का हिस्सा हरिद्वार स्थित नारायणी शिला के रूप में पूजा जाता है।
पितृ पक्ष में अमावस्या के दिन तक श्राद्ध किए जा सकते हैं। हरिद्वार नारायणी शिला में पितरों के पिंडदान का अधिक महत्व है। मान्यता है कि यहां पितरों का पिंडदान और तर्पण करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
भगवान नारायण का साक्षात् हृदय स्थान हरिद्वार को कहा जाता है, माना जाता है कि मां लक्ष्मी उनके हृदय में निवास करती है. इसलिए इस स्थान पर श्राद्ध कर्म का विशेष महत्व है.
हरिद्वार में कुमाऊं और गढ़वाल ही नहीं, बल्कि अन्य राज्यों से भी श्रद्धालु पितरों का तर्पण करने पहुंच रहे है। उत्तराखंड प्रशासन द्वारा सुरक्षा के कड़े इंतेज़ाम किये गए है, जिससे पिंडदान करने आये लोगों को किसी भी प्रकार की परेशानियों का सामना न करने पड़ा।