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माँ ज्वाला देवी के गर्भगृह में जल रही है कई सालों से 9 अखंड ज्योत

कंगड़ा: हिमाचल प्रदेश में प्रसिद्ध ज्वाला देवी मंदिर कांगड़ा जिले में कालीधर पहाड़ी पर स्थित है। बता दे यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ को ज्वालामुखी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।  

इस मंदिर में माता की कोई मूर्ति नहीं है बल्कि माँ की पावन ज्योति हमेशा जलती रहती है। मंदिर स्थल चमत्कारों से भरा हुआ है, बता दे ज्वाला देवी मंदिर ज्वालामुखी का दिव्य धाम है जो कि शक्तिपीठों में पवित्र और प्रचंड स्थान माना गया है। 

शक्तिपीठ माँ ज्वाला देवी के मंदिर की मान्यता है कि माता सती की अधजली जीभा इस स्थान पर गिरी थी। इसके बाद वहां के लोगों ने माँ की साधना की और माँ को ज्वालादेवी कहकर पुकारा। 

माँ ज्वाला देवी के मंदिर में जलने वाली अग्नि को ही माँ ज्वाला का रूप माना जाता है। इस मंदिर में माँ की शक्ति के नौ स्वरूपों में पृथ्वी के गर्भ से नौ ज्वालाएं जलती रहती है। इन नौ ज्योतियों को अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका, अंजीदेवी, महाकाली के नाम से जानी जाती है। 

इस मंदिर का निर्माण सबसे पहले कटोच वंश के मूलराजा भूमि चंद द्वारा करवाया गया था। बता दे राजा भूमिचंद को मां अंबिका ने राक्षसों को खत्म करने के बाद बाकी बचे राक्षसों का नाश करने का कार्य दिया था जिसके बाद उन्हें राजा की उपाधि मिली थी। 

राजा भूमिचंद द्वारा माँ ज्वाला देवी के मंदिर का कार्य अधूरा रह जाने के कारण महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसारचंद के द्वारा 1835 में मंदिर निर्माण का कार्य पूरा किया गया था। 

माना ये भी जाता है कि जब बादशाह अकबर ने इस मंदिर के बारे में सुना तो वह हैरान हो गया। उसने अपनी सेना को बुलाया और मंदिर की इस अदभुत लीला को देखने निकल पड़ा। माँ ज्वाला के गर्भगृह में जल रही अखंड ज्योत को देखकर शंका होने लगी तब अकबर ने गर्भगृह में जल रही अखंड ज्योत को बुझाने का प्रयास किया था। दरअसल अकबर ने मंदिर की लौ को बुझाने के लिए अपनी सेना को ज्वालाओं के ऊपर पानी डालने का आदेश दिया, लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद अकबर की कोशिशें नाकाम साबित हुई। 

माँ ज्वाला देवी के चमत्कार को देखने के बाद अकबर झुक गया और उसने खुश होकर स्वर्ण छत्र चढ़ाया लेकिन माँ ज्वाला ने अकबर की भेंट को स्वीकार नहीं किया।