“हर बिगड़ा हुआ काम भी ये बनाती हैं, इसलिए तो मां कूष्मांडा कहलाती हैं” आज शारदीय नवरात्रि का चौथा दिन है। आज के दिन, मां कूष्मांडा की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि मां के इस स्वरूप की पूजा करने से, व्यक्ति के जीवन में कभी कष्ट नहीं आता है। मां कूष्मांडा के मुख पर हल्की सी मुस्कान रहती है। आठ भुजाओं वाली देवी के इस स्वरूप को अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है। पुराणों के अनुसार, मां कूष्मांडा ने अपने उदर से ही इस ब्रह्मांड को उत्पन्न किया है। यही वजह है कि मां के इस स्वरूप को कूष्मांडा देवी के नाम से जाना जाता है।
देवी कूष्मांडा, रोग विनाशक मानी गईं हैं। कहते हैं कि इनकी आराधना से भक्तों को गंभीर बीमारियों से राहत मिलती है और आरोग्यता का वरदान प्राप्त होता है। मान्यता है कि संतान प्राप्ति की कामना कर रहे लोगों को भी कूष्मांडा देवी की पूजा अवश्य करनी चाहिए।
मां के पूजन में उनके मंत्रों का विशेष महत्व है। आइये अब जानते हैं मां कूष्मांडा के मन्त्रों के बारे में:-
मां कुष्मांडा के मंत्र
ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः
सर्व स्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते। भयेभ्य्स्त्राहि नो देवि कूष्माण्डेति मनोस्तुते।।
मां कुष्मांडा का बीज मंत्र
ऐं ह्री देव्यै नम:
मंत्र जाप से होते हैं कई लाभ:
मां के चौथे स्वरूप की पूजा और उनके मंत्रों का जाप करने से भक्तों के रोगों का नाश होता है। इन मन्त्रों से आयु, यश, बल और आरोग्यता की प्राप्ति होती है। देवी कूष्मांडा, सच्चे मन से की गई सेवा और भक्ति से जल्द प्रसन्न हो जाती हैं। मां अपने भक्तों को सुख-समृद्धि और उन्नति प्रदान करती हैं। जो व्यक्ति दुख, विपदा और कष्ट से घिरे रहते हैं, उन्हें मां कूष्मांडा की पूजा जरूर करनी चाहिए।
पौराणिक कथा के अनुसार, संसार का जब कोई अस्तित्व नहीं था और हर जगह सिर्फ काला अंधेरा छाया हुआ था, उस समय मां दुर्गा के चौथे रूप ने जन्म लिया और ब्रह्मांड की रचना की। मां कुष्मांडा, सृष्टि की आदि-स्वरूपा हैं। देवी का यह रूप, सौरमंडल में विराजमान है। इनका तेज, स्वर्ण के समान है और प्रभा भी सूर्य के समान ही दैदीप्यमान है।
जगत जननी मां जगदंबा, नवरात्रि में पृथ्वी पर वास करती हैं। इस दौरान मां की निमित्त पूजा-पाठ और उपाय करने से जीवन से कष्टों का विनाश होता है और साथ ही जीवन - मानसिक, शारीरिक और आर्थिक रूप से मजबूत होता है। मां, अपने भक्तों को कभी भी निराश नहीं होने देती हैं। पूर्ण श्रद्धा रखने वाले भक्तों के सिर पर, मां का आश्रीवाद सैदेव बना रहता है।