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क्यों रखा जाता है अहोई अष्टमी का व्रत? जानें इस व्रत कथा से

व्रत और त्यौहारों का, हिन्दू धर्म में अपना एक विशेष स्थान है। हिन्दू धर्म में कई ऐसी शुभ तिथि आती हैं, जिन पर कोई न कोई विशेष व्रत पड़ता है और उस व्रत को विधिवत रखकर, व्रती, नाना प्रकार के फलों की प्राप्ति करता है। इसी कड़ी में एक व्रत है, अहोई अष्टमी का व्रत, जो कि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर पड़ता है। इस दिन माताएं, अपनी संतान की दीर्घायु, संतान प्राप्ति और उसके मंगलकारी जीवन के लिए निर्जल व्रत रखती हैं। इस व्रत को सुख और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए भी रखा जाता है।

कहते हैं कि जो मनोकामना अभी तक पूर्ण न हुई हो, वह, इस व्रत को करने से पूर्ण हो जाती है। इस व्रत में अहोई माता की पूजा की जाती है, जो माता पार्वती का ही एक स्वरूप हैं।

अहोई अष्टमी व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, एक गांव में एक साहूकार रहता था। उसके सात बेटे थे। दीपावली से पहले, साहूकार की पत्नी, घर की पुताई के लिए मिट्टी लेने खदान गई। वहां, वह कुदाल से मिट्टी खोदने लगी। खुदाई वाले स्थान पर सेई की एक मांद थी, जहां वह अपने बच्चों के साथ रहती थी। अचानक साहूकार की पत्नी के हाथों से कुदाल, सेई के बच्चे को लग गई और उसकी मृत्यु हो गई। यह सब देखकर, साहूकार की पत्नी को बहुत दुख हुआ, परंतु अब वह करती भी क्या? वह पश्चाताप करती हुई अपने घर वापस लौट गई।

कुछ समय बाद, साहूकारनी के एक बेटे की मृत्यु हो गई। फिर एक के बाद एक, उसके सभी बेटों की मृत्यु हो गई। वह अब बहुत दुखी रहने लगी। अपनी सभी संतानों को खोने का दुख उसके लिए असहनीय था।

एक दिन उसने, अपने पड़ोस की स्त्रियों को अपनी व्यथा बताते हुए रो-रोकर कहा कि, “मैंने जान-बूझकर कोई पाप नहीं किया। एक बार मैं मिट्टी खोदने, खदान में गई थी। मिट्टी खोदने में सहसा मेरी कुदाल से एक सेह का बच्चा मर गया था, तभी से एक वर्ष के भीतर, मेरी सातों संतानों की मृत्यु हो गई।”

यह सुनकर, उन स्त्रियों ने साहूकारनी को धैर्य देते हुए कहा कि, “तुमने जो बात हम सबको सुनाकर पश्चाताप किया है, उससे तुम्हारा आधा पाप नष्ट हो गया है। अब तुम माता पार्वती की शरण में जाओ और अष्टमी के दिन, सेह और सेह के बच्चों का चित्र बनाकर, उनकी पूजा और क्षमा याचना करो। ईश्वर की कृपा से तुम्हारे समस्त पाप धुल जाएंगे और तुम्हें पहले की तरह ही पुत्रों की प्राप्ति हो जाएगी।”

उन सबकी बात मानकर, साहूकार की पत्नी ने कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को व्रत रखा और विधिवत पूजा कर, अपने किये के लिए क्षमा मांगी। उसने प्रतिवर्ष नियमित रूप से इस व्रत का पालन किया। आखिरकार, उसे सात पुत्र रत्नों की प्राप्ति हुई। कहते हैं कि तभी से अहोई अष्टमी का व्रत रखने की परंपरा चली आ रही है।

मान्यता है कि जो भी स्त्री, अहोई अष्टमी के इस व्रत को विधिवत एवं पूर्ण निष्ठा के साथ रखती है, उसकी संतान को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है और उस पर माता पार्वती की कृपा हमेशा बानी रहती है ।