भारत में हर कोने में भगवान शिव का मंदिर है और उस मंदिर में शिवलिंग स्थापित है। एक तरफ जहां इन शिवलिंगों का अपना अलग महत्व है, वहीं दूसरी ओर ज्योतिर्लिंगों का अपना विशेष महत्व है। मान्यता है कि इनके दर्शन मात्र से ही सारे सारे कष्ट, पीड़ा, दुःख आदि ख़त्म हो जाते हैं। यू तो देश में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग हैं, उन्हीं ज्योतिर्लिंगों में एक है बाबा बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग, जो झारखंड के देवघर में स्थित है। 12 ज्योतिर्लिंगों में ये ज्योतिर्लिंग नौवें स्थान पर है।
देवघर यानी देवी देवताओं का निवास स्थान और यहीं भगवान भोलेनाथ का अत्यंत पवित्र मंदिर स्थापित है। बैजनाथ या बैद्यनाथ धाम के नाम से मशहूर यह मंदिर अपने आप में ही बेहद ख़ास है। क्योंकि ये इकलौता ज्योतिर्लिंग है, जहां एक शक्तिपीठ भी स्थापित है। यहां माता सती के हृदय गिरा था और इसकी वजह से ये माता के 51 शक्तिपीठों में से एक है। यहाँ स्थापित शिवलिंग को कामना लिंग भी कहा जाता है, क्योंकि मान्यता है कि यहां दर्शन करने मात्र से ही श्रद्धालुओं की हर मनोकामना पूर्ण हो जाती है।
बैद्यनाथ धाम मंदिर में जो शिवलिंग स्थापित है, इसको लेकर एक बेहद ही दिलचस्प और रोचक कथा है। इसकी कथा का संबंध लंकाधिपति रावण से है। कहा जाता है कि एक बार रावण भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या में लीन हो गया। इसके लिए उसने एक शिवलिंग बनाया और इस तपस्या के दौरान उसने एक-एक कर अपने नौ सिर को शिवलिंग पर चढ़ा दिया और जैसे ही दसवें सिर को काटकर चढ़ाने वाला था तभी महादेव प्रसन्न हुए और उसके सभी सिर को वापस जोड़ दिया और वरदान मांगने को कहा। इस पर रावण ने महादेव के सामने उनके शिवलिंग को लंका ले जाकर स्थापित करने की इच्छा जताई। महादेव ने उसे अनुमति दे दी और साथ में एक शर्त भी रख दी।
शर्त ये थी कि यदि शिवलिंग को लंका ले जाने के क्रम में उसने कहीं भी रास्ते में शिवलिंग को रखा तो वो वहीं स्थापित हो जाएगा। रावण ने महादेव की ये शर्त मान ली और शिवलिंग को उठा कर लंका की तरफ चल पड़ा। लेकिन जाते जाते रावण जब देवघर के पास पहुंचा तो उसे लघुशंका करने की आवश्यकता हुई। तब रावण ने उस लिंग को बैजू नामक एक ग्वाले को थमा कर लघुशंका करने चला गया। शिवलिंग वजनी था, लिंग के अत्यधिक भार होने की वजह से बैजू ने उसे जमीन पर रख दिया और वहां से चला गया। रावण जब लौट कर वापस आया तो उसने उस शिवलिंग को उठाने की बहुत कोशिश की, लेकिन वो उसे हिला भी नहीं पाया। रावण ने बहुत कोशिश की लेकिन शिवलिंग टस से मस नहीं हुआ। अंत में निराश होकर रावण ने शिवलिंग को अँगूठे से दबाकर वहाँ से चला गया।
रावण के जाने के बाद वहाँ ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र आदि देवताओं ने पहुँच कर उस शिवलिंग की विधिवत पूजा की और फिर पूजा होने के बाद शिवजी ने वहीं सभी देवगणों को दर्शन दिए और शिवलिंग को वहीं स्थापित कर दिया। मंदिर के बारे में मान्यता है कि इस मंदिर को विश्वकर्मा जी ने एक शिला से एक ही रात में बना दिया था। देवघर के स्थानीय लोगों का भी यही मानना है कि विश्वकर्मा जी ने ही यहां मंदिर को बनवाया था। चूकि यहां एक शक्तिपीठ भी है तो यहां मंदिर परिसर में भगवान शिव के साथ माता पार्वती का भी मंदिर है, जिसे लाल रंग के पवित्र धागों के माध्यम से गठजोड़ किया हुआ है। आपको ये जानकार हैरानी जरुर होगी कि इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग की लम्बाई सिर्फ़ 11 अंगुल है, जबकि मंदिर की कुल ऊँचाई 72 फीट है। सावन के महीने में यहां राजकीय श्रावणी मेला लगता है, जहां दूर दराज से लोग बाबा भोलेनाथ पर जल अर्पित करते हैं। सावन के महीने में बाबा धाम में स्थापित शिवलिंग पर जल चढ़ाने का एक विशेष महत्व है।
(अनमोल कुमार)