अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर प्रभु श्रीराम के भव्य मंदिर निर्माण तेज गति से चल रहा है। अगले साल मकर संक्रांति के दिन राम लला अपने गर्भ गृह में विराजमान हो जाएंगे और भक्तों को दर्शन देंगे। गर्भ गृह में विराजमान होने वाली राम लला की मूर्ति कैसी होगी? इस पर विशेषज्ञों की राय ली जा रही है लेकिन ये पहले ही तय कर लिया गया है कि 5.5 फीट ऊंची मूर्ति का निर्माण हजारों साल पुरानी पवित्र शालिग्राम शिला से किया जाएगा। रामलला की मूर्ति को तैयार करने के लिए शालिग्राम शिला नेपाल के जनकपुर से मंगवाई जा रही है, जिसे गंडक नदी से निकाला गया है। गंडक नदी से निकाले जाने के बाद जनकरपुर में इन शिलाओं का विधिवत पूजा-अर्चना की गई और फिर दो ट्रकों के माध्यम से अयोध्या के लिए रवाना किया गया।
ये पत्थर दो टुकड़ों में है और इन दोनों शिलाखंडों का वजन कुल 127 क्विंटल है। ये शालिग्राम शिला नेपाल से चलकर बिहार के रास्ते 02 फरवरी को अयोध्या पहुंचेंगी। जिन रास्तों से होकर दोनों शिला रथ गुजर रही है वहां इन शिलाओं को देखने भारी संख्या में लोग पहुंच रहे हैं। बिहार से निकलने के बाद और उत्तर प्रदेश में प्रवेश करने पर गोरखनाथ मंदिर में इन शिला रथों का रात्रि विश्राम हुआ। जहां पूरे विधि विधान के साथ इन शिलाओं का स्वागत किया गया।
क्या है शालिग्राम पत्थरों की मान्यता?
शास्त्रों में वर्णन है कि शालिग्राम पत्थर में भगवान विष्णु का वास होता है। सनातन धर्म में ब्रह्मा, विष्णु और महेश की विशेष मान्यता हैं। जिस तरह से भगवन शिव की आराधना शिवलिंग के रूप में की जाती है, भगवान ब्रह्मा की पूजा शंख के रूप में होती है। ठीक उसी तरह भगवान विष्णु की उपासना शालिग्राम के रूप में की जाती है। शास्त्रों में ये भी वर्णन है कि शालिग्राम पत्थर 33 प्रकार के होते हैं। जिसमें 24 प्रकार के पत्थर की पूजा भगवान विष्णु के अवतार के रूप में की जाती है। मान्यता ये भी है कि माता तुलसी का विवाह भगवान विष्णु रूपी शालिग्राम जी से हुआ था।
अक्षरा आर्या