कांगड़ा: देवभूमि हिमाचल प्रदेश में स्थित मां ज्वाला देवी के प्राचीन मंदिर करोड़ों हिन्दूओं की आस्था एक बड़ा केन्द्र है। यहां सालों भर 24 घंटे माता की अखंड ज्योत जलती रहती है, जिसमें कभी ना तो घी पड़ता और ना कभी तेल डाला जाता, लेकिन यहां ये ज्योत अखंड रुप में जलता रहता है। कुछ लोग इसे आस्था से जोड़ कर देखते हैं तो कुछ लोग इसे विज्ञान मानते हैं। कहते हैं पानी अग्नि का सबसे बड़ा शत्रु होता है, लेकिन इस ज्योत की अग्नि को पानी भी नहीं बुझा पाता। क्या ये कोई चमत्कार है या फिर यहां कोई विज्ञान है। वर्षों से इस रहस्य का पता लगाने की कोशिश की जा रही है...लेकिन अब तक इसका पता लगाने में विज्ञान भी नाकाम रहा है।
माता ज्वाला देवी मंदिर में सालों पर भक्तों का तांता लगा रहता है। खास तौर से नवरात्रि के मौके पर तो यहां की छटा देखते ही बनती है। यहां पहुंचने वाले श्रद्धालुओं का माता ज्वाला देवी पर अपना अलग ही विश्वास है। कहते हैं कि माता के इस दर कोई भी खाली हाथ वापस नहीं लौटता। इस मंदिर को लेकर कई कथाएं भी हैं। कहा जाता है कि मुगल बादशाह अकबर ने इस अखंड ज्योत को बुझाने की पुरजोर कोशिश की थी, लेकिन नाकाम रहा। कहते हैं कि उसने यहां की अखंड ज्योत के बुझाने के लिए पूरी की पूरी नहर खुदवा दी थी, लेकिन हर तरह से नाकाम रहा और आखिरकार उसे भी इस दैवीय शक्ति के सामने नतमस्तक होना पड़ा और माता के लिए उसके मन में श्रद्धा जागृत हुई और माता को सोने का छत्र चढ़ाया।
इस मंदिर से जुड़ी एक मान्यता ये भी है कि, राजा दक्ष ने एक बार ब्रह्माण्ड के सबसे बड़े यज्ञ का आयोजन कराया। इसमें सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया लेकिन उन्होंने अपने दामाद और देवों के देव महादेव का इसमें आमंत्रित नहीं किया। ये बात माता सती को नागवार गुजरी और अपने पति के इस अनादर पर उन्हें गुस्सा आया। इस से आहात होकर उन्होंने उसी यज्ञ के हवन कुंड में कूदकर अपने प्राणो की आहुति दे दी। जब भगवान् शिव को इस बारे में पता लगा तो उन्होंने क्रोध में भरकर देवी सती के जले शरीर को गोद में उठाकर पुरे ब्रह्माण्ड की परिक्रमा शुरू कर दी। यह देख भगवान् विष्णु ने उन्हें रोकने के लिए अपने सुदर्शन चक्र से देवी के पार्थिव शरीर को कई टुकड़ो में बांट दिया और जहां जहां माता सती के अंग गिरे वो शक्तिपीठ कहलाए। शास्त्रों में इस बात का वर्णन हैं कि जहां आज ज्वाला देवी मंदिर हैं, वहां माता सती का जीभ गिरा था और जीभ को अग्नि तत्व बताया गया है। कहते हैं कि यही वजह है कि यहाँ बिना घी, बिना बाती और बिना तेल के माता की अखंड ज्योत जलती रहती है।
अक्षरा आर्या