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Temples of India: मां शारदा का ऐसा मंदिर जहां मां सशरीर है विराजमान, यहां भक्तों की होती है सभी मनोकामएं पूरी...

युग युगांतर से ही भारत में मंदिरों का अपना एक विशेष आध्यात्मिक और पौराणिक महत्त्व रहा है। हमारे देश में कई मंदिर तो मां गंगा की कल-कल करती अविरल धारा के किनारे हैं। जो उसकी आध्यात्मिकता, दिव्यता को और बढ़ा देता है। कई ऐसे भी तीर्थ और कई ऐसे भी मंदिर हैं। जो अपनी दिव्यता के लिए तो जाने ही जाते हैं साथ ही वो अपने अंदर कई रहस्यों को भी समेटे हुए हैं जो अकल्पनीय है। ऐसे ही दिव्य तीर्थों में से एक है। उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में स्थित विंध्याचल धाम जिसके बारे में आज हम आप को बताएंगे।

मां गंगा की पवित्र नदी के किनारे ना जाने कितने तीर्थ स्थल मौजूद हैं। पहाड़ो पर स्थित इन तीर्थ स्थलों की दिव्यता तब और बढ़ जाती है। जब इनका स्पर्श स्वंय मां गंगा करती हैं। हम बात कर रहे हैं 51 शक्तिपीठों में से एक विंध्य पर्वत पर विराजमान आदि शक्ति माता विंध्यवासिनी देवी का जिनकी महिमा अपरम्पार है। जिसे मणिद्वीप के नाम से भी जाना जाता है।

त्रिकोण यंत्र पर स्थित विंध्याचल निवासिनी देवी लोकहिताय, महालक्ष्मी, महाकाली तथा महासरस्वती का रुप धारण करती हैं। विंध्यवासिनी देवी विंध्य पर्वत पर स्थित मधु तथा कैटभ नामक असुरों का नाश करने वाली भगवती यंत्र की अधिष्ठात्री देवी हैं। कहा जाता है कि जो मनुष्य इस स्थान पर तप करता है, उसे अवश्य सिद्वि प्राप्त होती है। विविध संप्रदाय के उपासकों को मनवांछित फल देने वाली विंध्याचल देवी अपने अलौकिक प्रकाश के साथ यहां नित्य विराजमान रहती हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां पर संकल्प मात्र से उपासकों को सिद्वि प्राप्त होती है। इस कारण यह क्षेत्र सिद्व पीठ के रूप में विख्यात है। आदि शक्ति की शाश्वत लीला भूमि मां विंध्याचल धाम में पूरे वर्ष दर्शनार्थियों का आना-जाना लगा रहता है। चैत्र व शारदीय नवरात्र के अवसर पर यहां देश के कोने-कोने से लोगों का हुजूम उमड़ता है। भगवान ब्रह्मा, विष्णु व महेश भी मां भगवती की मातृभाव से उपासना करते हैं, तभी वे सृष्टि की व्यवस्था करने में समर्थ होते हैं। इसकी पुष्टि मार्कंडेय पुराण, श्री दुर्गा सप्तशती की कथा से भी होती है वहीं शास्त्रों में इस बात का भी उल्लेख मिलता है कि आदिशक्ति देवी कही भी पूर्णरुप में विराजमान नहीं हैं, विंध्याचल ही ऐसा स्थान है जहां देवी के पूरे विग्रह के दर्शन होते हैं। शास्त्रों के अनुसार, अन्य शक्तिपीठों में देवी के अलग-अलग अंगों की प्रतीक के रुप में पूजा होती है।

रजत द्विवेदी