पुरी: भारत के चार धामों में से तीसरा धाम ओडिशा के पूरी में है। जहाँ हर साल बड़े धूम-धाम से जगन्नाथ रथ यात्रा निकाली जाती है। इस पवित्र यात्रा में सबसे पहले लकड़ी से तीन रथों का निर्माण किया जाता है। इन रथों को बनाने का काम अक्षय तृतीया के दिन से शुरू किया जाता है जो रथ यात्रा से पूर्व संपन्न किया जाता है। मई और जून की कड़ी धुप में बढ़ई और मूर्तिकार महाप्रभु जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की मूर्तियों को ले जाने वाले रथ का निर्माण कार्य कर रहे हैं, जिसकी तैयारियां बड़े जोरों-शोरों पर चल रही हैं। देश के कोने-कोने से लोग इस बनते हुए रथ का दर्शन करने और स्पर्श करने पहुँच रहे हैं। इस वर्ष भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा 20 जून को निकाली जाएगी।
आपको बता दें हर साल इन रथों को नए सिरे से बनाया जाता है। जिसमें कारीगरों का बहुत श्रम लगता है। इन रथों को बनाने से पहले दारु नाम के पेड़ व दूसरे पेड़ों की पहचान की जाती है और यह कार्य सोने की कुल्हाड़ी से शुरू किया जाता है, इन्ही पेड़ की लकड़ियों से रथ के सभी हिस्सों को बनाया जाता है। किस रथ में कितने वृक्षों की आवश्यकता होगी, कितनी लकड़ी किसमें लगेगी उनका आकार व संख्या सब पहले से ही निर्धारित रहती है। भगवान जगन्नाथ के रथ निर्माण का कार्य 58 दिनों तक चलता है। इन तीनों रथों को बनाने का कार्य हर साल परंपरागत कारीगरों द्वारा ही किया जाता है। जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी इसे करते चले आए हैं। इन रथों की ऊंचाई 45, 44 और 43 फीट ऊँची होती है। इसी के साथ रथों में लगने वाले पहियों की संख्या, लम्बाई, चौड़ाई आदि सब निर्धारित कर बनाई जाती है।
रमन शर्मा